Wednesday, December 31, 2014

नववर्ष की हार्दिक बधाई !














डायरी के पन्ने अब कहने लगे।
आँख से उनके आंसू बहने लगे।

जनवरी में मैं फीते से लिपटा मिला,
देखते ही मुझको चेहरा उसका खिला।
खोला मुझको तो अरमान जगने लगे।।
आँख से उनके आंसू बहने लगे।

नर्म हांथो से उसने मुझको छुआ ,
जैसे चेहरा है पढता कोई दुआ।
आँखों में ख्वाब फिर झिलमिलाने लगे।।
आँख से उनके आंसू बहने लगे।

दर्द निकलने का फिर मैं सहारा बना ,
तीन सौ पैंसढ़ दिनों का पहाड़ा बना।
इकतीस दिसम्बर को उनसे मिलने लगे।।
आँख से उनके आंसू बहने लगे।

नववर्ष की भोर हो मुबारक तुम्हें ,
स्वर्णिम जीवन की आभा मुबारक तुम्हें।
मन में कविता कोई फिर से पलने लगे।।
आँख से उनके आंसू बहने लगे।

नववर्ष की सभी बन्धुओं को हार्दिक बधाई !








Tuesday, December 16, 2014

दोहे

नेता ऐसा चाहिए जनता का दे ध्यान।
नित ऐसे कारज करे बढे मान सम्मान।।

मनसा-वाचा-कर्मणा से हो निष्ठावान।
जनता उसको पूजती जैसे हो भगवान।।

लोकतंत्र के समय में नेता दयानिधान।
द्रष्टी रुके बबूल पर बन जाए धनवान।।

शिछा मंत्री बन गए देते भाषण तान।
शारद उनसे दूर है लछमी वाहन जान।।

    

 

Wednesday, October 22, 2014

जगमग दीप जले।








जगमग-जगमग दीप जले।

घर -आँगन खुशियों से झूमे,
सपना सब आँखों का है।
नया सबेरा स्वर्णिम आये,
सपना सब रातों का है।
विष्णुप्रिया हर देहरी आये,
स्वर छन-छन लगे भले।।
जगमग-जगमग दीप जले।

तन-मन सबके स्वच्छ रहें,
कटुता कहीं न दिखे।
ऊँच-नीच का भेद मिटे फिर,
हर दिल झूम उठे।
सप्त राग हर मुख से निकले,
सुख में सभी पले।।
जगमग-जगमग दीप जले।

गांव- नगर सब जगमग होवें,
राहें सब मुस्काएं।
कृष्ण सखा संग बैठ कदम पर,
मुरली मधुर बजायें।
सपना पूरा मोदी का हो,
हर चेहरे पर ख़ुशी खिले।।
जगमग-जगमग दीप जले।

सभी प्रिय पाठकों को दीपावली की
हार्दिक शुभकामनाएं ! 

Wednesday, October 1, 2014

'गांधी जयंती पर विशेष'



















याद आया बापू जन्मदिन तुम्हारा।
अब ये जीवन कर्जदार है तुम्हारा।।

दांडी की यात्रा से जीवन दिलाया तूने।
पाबंदियों से हटके नमक खिलाया तूने।
जीने का आदमी को मिल गया सहारा।।
याद आया बापू जन्मदिन तुम्हारा।

चरखा थमा के तूने खादी बना दिया।
भारत के जान को तूने गांधी बना दिया।
खादी से ये तन ढक गया बेचारा।।
याद आया बापू जन्मदिन तुम्हारा।

सत्य-अहिंसा का पौधा तूने उगा दिया।
बिना घाव-घायल गोरों को भगा दिया।
हर भारतवासी का भाग्य था संवारा।।
याद आया बापू जन्मदिन तुम्हारा। 


बहुत-बहुत बधाई !

पाठक बन्धुओं  को 'शारदीय नवरात्रि ' की बहुत-बहुत बधाई !

माँ भगवती आपके जीवन को खुशियों और उल्लास से परिपूर्ण करे।
अपनी कृपा द्रष्टि सदैव सभी लोगों पर बनाये रखे। इसी कामना के साथ
माता की निम्न मन्त्र द्वारा आराधना करें -








सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमो स्तु ते।।

सर्वा बाधा प्रश्मनंम त्र्यलोकश्या अखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्य स्म द्वैरि विनाशनम ।।     

Wednesday, August 20, 2014

दोहे

अपने सब अपने कहैं, मन बहुतै खुश होय।
घाव करैं जब सगे तो, औषधि दिखे न कोय।।

अपनो जीवन हवन करि, सुत को पालै मातु।
जस देखी सारंग नवल, बिसरि गयी तब मातु।।

पूजा, ब्रत सब करि रहे, दीनन को दें दान।
मातु-पिता सेवैं नहीं, जिनते उनको मान।।

पश्चिम के संग चलै में, जर भूलें सब कोय।
हाथ न आवै वहि दिशा, भानु भी डूबा होय।।

सब भाषा सुन्दर गुणी, करो सबका सम्मान।
निज भाषा भूलो नहीं, जिससे देश की शान।।  





Thursday, August 7, 2014

बिटिया

घर-आँगन जब सब सूना था,
बनके एक फूल खिली बिटिया।
मुस्कान पिता की वह बनकर,
मातृत्व के साथ पली बिटिया।
पुतली माँ-बाप के नयनों की,
नन्हें कदमों पे चली बिटिया।
सप्त-राग मधुर पैजनियों के,
लगती रुनझुन में भली बिटिया।।

गुड़ियों को रखकर बिस्तर पर,
स्कूल को जब जाती बिटिया।
विश्वास पिता का अडिग रहे,
ट्रॉफी संग में लाती बिटिया।
माँ की ममता औ सीखों से,
सम्मान बहुत पाती बिटिया।
शिच्छा के चरम आसमां पर,
ध्रुवतारा बन जाती बिटिया।।

हो अन्धकार जहाँ भी कोने में,
फिर दीवाली बन जाती बिटिया।
काली बदरी बन सावन की ,
स्नेह फुहार बरसाती बिटिया ।
खुशबू से घर-बाहर अपनी ,
महर-महर महकाती बिटिया।
कष्ट किसी पर जब भी आए,
मदर टेरेसा बन जाती बिटिया।।

जन्मदात्री माँ से अलग जब,
पति के घर को जाये बिटिया।
अपनी श्रद्धा, सेवा के भरोसे ,
प्यार सभी का पाये बिटिया।
पति के कुल को श्रेष्ठ समझ,
उसका मान बढ़ाये बिटिया।
नज़र उठे जब कुल पर कोई,
दुर्गा फिर बन जाये बिटिया।।

पुत्र की आस को मन में रख,
कैसे नर हरने चले बिटिया।
बन शत्रु गर्भ पर वार करें ,
फिर भ्रूण में कैसे पले बिटिया।
निर्मोही, निर्मम, हत्यारे वे,
अपने ही कर से छले बिटिया।
अब रोये धरा औ अम्बर भी,
अपनों के हाथ जले बिटिया।।



  

 

Tuesday, August 5, 2014

इस माटी से चन्दन करते हैं



















जन्मभूमि पावन अपनी, इसका हम वन्दन करते हैं।
भारत माता के पुत्र आज, इस माटी से चन्दन करते हैं।।

रवि की प्रथम किरण कुंदन, साँझ सुहाग की लाली है।
पग धोता रत्नाकर निशिदिन, हिमगिरि करता रखवाली है।
ऋतुएँ जहाँ बदलती रहती , फिर आता है मधुमास यहां।
इस धरती पर आते कामदेव, नटवर नर्तन कर गए जहाँ।
कारी बदरी को देख मोर , फिर कलरव क्रंदन करते हैं।।
भारत माता के पुत्र आज, इस माटी से चन्दन करते हैं।।

वेद, पुराण, ऋचाएँ पावन, अनमोल व्यास की थाती है।
तोते रटते हैं राम नाम, कोयलिया गीत सुनाती है।
मानव की क्या बात करें, पाहन भी पूजे जाते हैं।
द्वार से भूखा जा न सके, बलिभाग काक भी पाते हैं।
गायें भी माता कहलाती, हम उनका पूजन करते हैं।।
भारत माता के पुत्र आज, इस माटी से चन्दन करते हैं।।

झर-झर, झर-झर झरते झरने, नदियां रसधार बहाती हैं।
पावस में रिम-झिम बूदें भी, राग मल्हार सुनाती हैं।
है हरित वर्ण माँ का आँचल, रसयुक्त यहां की बोली है।
त्यौहार अनगिनत होते जहाँ, पूजा की थाली, रोली है।
महर-महर महके फुलवारी, भौंरें भी गुंजन करते हैं।।
भारत माता के पुत्र आज, इस माटी से चन्दन करते हैं।।

कुछ मित्र भूल ये कर बैठे, सहने को समझे लाचारी हैं।
है रक्त उबलता मेरा भी , पड़ सकता उनको भारी है।
करते हैं सौ तक माफ़ सुनो, हम कृष्ण की रीति निभाते हैं।
जग को हम फिर बार-बार, सौहार्द का पाठ पढ़ाते हैं।
अरि भी जो आये दरवाजे, उसका अभिनन्दन करते हैं।।
भारत माता के पुत्र आज, इस माटी से चन्दन करते हैं।।





Monday, August 4, 2014

तुलसी-जयंती

 













 श्रद्धेय संत गोस्वामी तुलसीदास का जन्म श्यामसुन्दर दास और जनश्रुतियों के आधार
पर श्रावण मास, शुक्ल सप्तमी, संवत १५५४ को बाँदा जिले के राजापुर गांव में आत्माराम
दुबे के घर हुआ था. इनकी माता का नाम हुलसी था. तभी तो संत कवि रहीम अपने को रोक
नहीं पाते हैं और उनके मुख से निकल ही पड़ता है -'' सुरतिय,नरतिय,नागतिय, सब चाहति
अस होय. गोद लिए हुलसी फिरैं, तुलसी सों सुत होय.
      जब सारी सृष्टि की माताएं तुलसी के समान पुत्र की कामना करने लगें। तो कुछ ईशवरीय
चमत्कार होना ही था। वही हुआ  तुलसी को ऐसी ''राम-कृपा'' प्राप्त हुई कि भक्ति गंगा में वे गोते
लगाने लगे. उसी का परिणाम हुआ कि उनके द्वारा ''श्री रामचरित मानस'' जैसे भक्तिमार्गी
महाकाव्य की रचना हुई. उससे समस्त जनमानस को 'राम-भक्ति गंगा' में नित्य गोते लगाने
का सुअवसर प्राप्त हुआ. इसकी इतनी सरल भाषा, जिसने सभी लोगों के मन को अपनी ओर
आकर्षित कर लिया। तभी तो संत तुलसीदास हिंदी काव्य जगत के चन्द्रमा हो गए. किसी ने
ठीक ही लिखा है- ''सूर-सूर, तुलसी शशी, उडगन केसवदास।
                          अब के कवि खद्दोत सम, जंह-तंह करत प्रकास।।''
     
पावन कुल रघुवंश में जन्म, राम को रूप देखावत को।
वर दन्त की पंगत कुंद कली, ऐसे छन्द को गावत को।
जनकलली लछमी के रूप को, दशरथ-बहू बनावत को।
होत न तुलसी जो जग में, राघवेन्द्र की धार बहावत को।।

किष्किन्धा पर मन मारि रहे, हनु से सुग्रीव मिलावत को।
रामहि राम रटैं जो पवनसुत, राम के दरस करावत को।
दंतन बीच बसे जस जिभिया, विभीषण से राम रटावत को।
होत न तुलसी जो जग में, राघवेन्द्र की धार बहावत को।।

''भक्त प्रवर तुलसीदास की जयंती के अवसर पर उनको कोटिशः प्रणाम''

   

Friday, August 1, 2014

घनराज सुनौ

घनराज सुनौ अरदास मोरि,
बूंदन कइ बान चलाइ देउ।
हमरी आंखी पथराइ गयीं,
अब आस पिआस मिटाइ देउ।

खेतन कइ छाती दरकि रही,
बेहन सबै मुरझाइ गयी।
रोपनी कै जिव मा ललक रहै,
तुमरी किरपा ते बुझाइ गयी।
आँखिन मा जाला है परिगा,
तुमरी अब राहै देखै मा।
खेतै मा चक्कर काटि रहेन,
छाला अब परिगे पांवै मा।
अब तौ गति पपिहा अस होइगै,
तनि पानी कै धार गिराइ देउ।।
घनराज सुनौ अरदास मोरि,
बूंदन कइ बान चलाइ देउ।

तुम लुकाछिपी अब खेलि रहेउ,
घरवाली जइसे मुहिंका झांपै।
खेतै मा गन्ना अपनी जर ते,
तुमरे बिन थर-थर-थर कांपै।
मेहरारू अब तौ बार -बार,
नाकै की झुलनी मांगि रही।
खोंसि मोबाइल झोरा मा,
रोजइ मइके भागि रही।
वादा कीन धानन पर हम,
तनि हमरिउ लाज बचाइ लेउ।।
घनराज सुनौ अरदास मोरि,
बूंदन कइ बान चलाइ देउ।

इंजन बोरिंग पर बांधेन,
ठोंक-पीट तौ करे रहेन।
तुमरी बेरहमी का हमतौ,
लागति ब्याजै भरे रहेन।
कइसे डारी यहिके पेटे,
डीजल बहुतै मंहग भवा।
ससुरी मंहगाई डायन का,
यहुतौ बेटवा सगा भवा।
मगज कुन्द भै अब हमारि,
तनि धक्का मारि चलाइ देउ।।
घनराज सुनौ अरदास मोरि,
बूंदन कइ बान चलाइ देउ।  

Wednesday, July 30, 2014

ईद मुबारक़ !

















जब मज़हबों की खाई पटे तो ईद हो जाये।
जब बैर की कालिख हटे तो ईद हो जाये।
जब आपसी रिश्ते सलामती की दुआ करें,
फिर दिल से दिल हँसके मिले ईद हो जाये।।

ईद मुबारक़ !   

Wednesday, July 23, 2014

'आजाद' को शत-शत नमन!
















धन्य है वह जननी, जिसने एक ऐसे शिशु को जन्म दिया।
उसने एक छोटे से गांव बदरका, उन्नाव में जन्म लेकर
अपने तिवारी वंश के साथ -साथ, अपने देश को स्वाधीन
कराने के लिए अपनी आहुति दे दी। पंडित चंद्रशेखर तिवारी
'आजाद' का यह देश सदैव ऋणी रहेगा। उनकी जयंती पर
शत-शत नमन।

पीठ पर कोड़ों को सह जो आजाद रहा।
गोरे तिलमिलाते रहे वो आजाद रहा ।
उसकी छाया भी न छू पाये वो जीते जी,
अपनी गोली खा के वह आजाद रहा।।

Thursday, July 17, 2014

सीमा पर लाल तड़पता है

जब उठती हैं टीसें रह-रहकर,
फिर दायाँ अंग फड़कता है।
दुश्मन की गोली से घायल,
सीमा पर लाल तड़पता है।।

घुटनों पर माँ के आँचल में,
गिरकर वंदन करता है।
ऋषि-मुनियों की पावन भूमि,
इस रज से चन्दन करता है।
सीमा पर बेटा रहे अमर ,
ब्रत-उपवास अनेकों साधे थे।
नज़दीक बलायें आ न सकें,
ताबीज़ अनेकों बाँधे थे।
अब तो है उनपर नज़र रुकी,
ओ प्यार उन्ही से छलकता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।

उस माँ ने है जनम दिया,
फिर शोणित में अंगार भरे।
दुश्मन से आँख मिलाने में,
ये लाल कभी भी नहीं डरे।
अमर शहीदों के गौरव की,
जननी ने कथा सुनायी थी।
वह डिगे नहीं  निज कर्मों से,
ऐसी बुनियाद बनायी थी।
मातृभूमि के ऋण के हित,
इस तन से लहू टपकता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।

चाहे बोटी-बोटी कटे जिगर,
पग पीछे नहीं हटाऊँगा।
मैं मातु सिंहनी का सुत हूँ,
यह करके सत्य दिखाऊँगा।
आज अग़र मैं उठ न सका,
फिर कोख़ उसी में आऊंगा।
दुश्मन थर -थर थर्रायेगा,
जब शावक सा मैं धाऊंगा।
'वन्दे मातरम' का बीज मंत्र,
अब धीरे -धीरे रटता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।



Thursday, July 10, 2014

अपने दिल में...






















नाम माला जपे हाथ उनकी ,
जन-जन को ये सिखाये हुए हैं।
यादें उनकी बनाके धरोहर ,
अपने दिल में सजाये हुए हैं।।

हाथ जब भी उठा माँ के ऊपर,
सैलाब बनकर वो आगे बढ़े हैं।
कोई छाया को भी छू न पाए,
इसलिए हंसके फांसी चढ़े हैं।
वक़्त की आँधियाँ जब भी आती,
वे हिचकियाँ बनके आए हुए हैं।।
यादें उनकी बनाके धरोहर ,
अपने दिल में सजाये हुए हैं।

भगत, आज़ाद के पौरुष बल का,
उन गोरे अफसरों ने लोहा था माना।
जो गरजते थे अश्फाक - बिस्मिल,
उबलते शोणित को उनके था जाना।
उनकी सूरत की रच करके मूरत,
अपने मन में बसाये हुए हैं।।
यादें उनकी बनाके धरोहर ,
अपने दिल में सजाये हुए हैं।

बहसीपन औ आतंकी दहसत,
बंद होता नहीं ये सिलसिला है।
भारत का प्यारा हर देशवासी,
मन ही मन में रहा बिलबिला है।
मन्सूबे सच हो उनके  कभी ना,
बारूद सीने में छिपाए हुए हैं।।
यादें उनकी बनाके धरोहर ,
अपने दिल में सजाये हुए हैं।
 

 

Tuesday, July 8, 2014

नारी-नर की सहगामी



















नारी सृष्टी की कर्णधार, इसका तुम सम्मान करो
नारी-नर की सहगामी, इसका मत अपमान करो।

असह्य वेदना सहकर वह, दुनिया में नर को लाती है।
सीने पर लातों को खाकर, बच्चे को दूध पिलाती है।
कौन सहन कर सकता है, नारी में इतनी छमता है।
देवों को भी वह भाती है, 'अनुसूया' में मन रमता है।
ऐसी सहनशील माता के, चरणों में परनाम करो।।
नारी-नर की सहगामी, इसका मत अपमान करो।

साथ चली जब नर के वह, पिता के घर को छोड़ दिया।
पली, बढ़ी जिस घर में वह, उससे मुंह तक मोड़ लिया।
जीवन में हर कष्ट सहन कर, वन 'सीता' जैसी चली गयी।
इस निर्मम दुनिया के हाथों, पग-पग पर वह ठगी गयी।
आँखों में छलके आंसू ना, आँचल को खुशियों से भरो।।
नारी-नर की सहगामी, इसका मत अपमान करो।

घर के आँगन में जिसने, गुड़ियों को अपनी खिलाया था।
पिता रुष्ट भाई से हो जब, खुद पिटकर उसे बचाया था।
प्यार उमड़ता है जब उसमें, राखी बनकर वह आती है।
लेती बलायें भइया की वह, फिर 'कर्मवती' बन जाती है।
हँसता चेहरा रहे बहन का, ऐसी कोई जतन करो।।
नारी-नर की सहगामी, इसका मत अपमान करो।





Monday, July 7, 2014

आँख से....

देशभक्ती की बातें हैं करते बहुत,
'बिस्मिल' से कम हैं कहते नहीं।
वार जब भी हुआ माँ के ऊपर कभी,
आँख से उनके आंसू हैं बहते नहीं।।

स्वेत चोंगा पहन देशभक्ती का वे,
काम माँ के लिए कोई करते नहीं।
लोग उनके लिए चीज़ छोटी बहुत,
वे तो भगवान से भी डरते नहीं।।      

Friday, July 4, 2014

एंकर





एंकर किसी कार्यक्रम की जान होता है।
वह प्रतिभागी के लिए महान होता है।
वह लफ़्जों से उतारता है चाँद-तारे भी,
इसलिए वह कार्यक्रम का भगवान होता है।।

वह फीके भोजन में अचार की चटकार है।
तपते रेगिस्तान पर एक ठंडी फुहार है।
इतिहास के भी परखच्चे उड़ा सकता है वो,
वह इस रण बांकुरों की तीख़ी तलवार है।।

वह शान्त तबले की थाप बन जाता है।
वह अनबुझी पहेली की बात बन जाता है।
लहरें समन्दर की कर सकेंगी उसका क्या,
वह डूबती कश्ती की पतवार बन जाता है।।  

Thursday, July 3, 2014

कभी नहीं झुकने देंगे


















गर्वित सीस तिरंगे का हम, कभी नहीं झुकने देंगे।
पावन शब्द शौर्य गाथा के, कभी नहीं मिटने देंगे।

सत्य-अहिंसा के पथ चलकर, जो नींद नहीं सुख की सोया।
साबरमती की कुटिया में रह, खादी के बीज को था बोया।
बापू की यह अमर कहानी, मन से नहीं मिटने देंगे।।
गर्वित सीस तिरंगे का हम, कभी नहीं झुकने देंगे।

सीस मुकुट हिमगिरि जिसका, चरणों को धोता है साग़र।
कल-कल करती गंगा-यमुना, भरतीं अमृत की गागर।
इस मातृभूमि के सब पुत्रों को, कभी नहीं बँटने देंगे।।
गर्वित सीस तिरंगे का हम, कभी नहीं झुकने देंगे।

जिसका शोणित सदा खौलता, सीमा पर वह जाता है
सोकर बलिवेदी की शैय्या, माता का मान बचाता है।
रक्त बूँद की उस लाली को, कभी नहीं छँटने देंगे।।
गर्वित सीस तिरंगे का हम, कभी नहीं झुकने देंगे।
 


Wednesday, July 2, 2014

इनकी चाल














इनकी चाल बहुत है न्यारी,
इनका तुमही  संभारो राम।

मोबाइल लीन्हें दस इन्ची,
वह  जेब को भइया फारे।
ईयरफोन ऊपर ते जोड़ें ,
फिर कान में दूनौ डारे।
बहुतै खुश होवै महतारी।।
इनका तुमही  संभारो राम।

बैठें जब मोटरसाइकिल पर,
फिर वो पॉयलट बनि जावें।
वह ना देखैं सड़क सलोनी ,
झर-झर गाड़ी जोर उड़ावें।
उनका दिखे न और सवारी।।
इनका तुमही  संभारो राम।

तूफानी चाल बहुत है प्यारी,
फिर तो चीता बनिके भागें।
बगल में जेहिके निकसि परै,
फिर यमराज के ऐसे लागें। 
वह सुमिरै हनुमत बलधारी।।
इनका तुमही  संभारो राम।

माने ना वो पिता की एकौ,
गाड़ी सरपट जोर भगावें। 
पकड़े पुलिस चौराहे पर,
फिर डण्डा से समझावें। 
उनकी जीन्स फटी पिछवारी।।
इनका तुमही  संभारो राम।












  

Sunday, June 29, 2014

बैठी बेटी क्वाँरी

जिनके घर बैठी बेटी क्वाँरी, उनकी कुछौ समझि ना आय।।

वर खोजै में अबतक भइया, टूटे जूता-चप्पल सारे।
अब तो वर का नाम लिए से, दिन में दिख रहे तारे।
खोपड़ी पीटि रही महतारी, उनकी कुछौ समझि ना आय।।

लड़का जानी लीवर जैसा, टांग से वह है लंगड़ा।
पीकर ठर्रा रोज़ शाम को, करता सबसे झगड़ा।
उनको चाही कार सवारी, उनकी कुछौ समझि ना आय।।

जो लड़का इंजिनियर बन गया, बाप के देखो तेवर।
दो लाख नहीं, बीस लाख चाहिए, साथ में चाही जेवर।
अब तो लागें सभी भिखारी, उनकी कुछौ समझि ना आय।।

कुण्डली जब वे देते, उनका सीना छत्तिस हो जाता।
लड़के की कुण्डली में देखो, शनि बैठे-बैठे गुर्राता।
अबतो मंगल पड़ गया भारी, उनकी कुछौ समझि ना आय।।

कुछ लोग दहेज़ के कारण, बेच दिए घर अपना।
रसुराल में बेटी सुखी रहे, यह है उनका सपना।
बिक गयी उनकी लोटिया-थारी,उनकी कुछौ समझि ना आय।।

यह दहेज़ का दानव अब, सुरसा के जैसा लगता।
ओ समाज के ठेकेदारों , यह तुमको भी ठगता।
घर में सिसके बेटी बिचारी, उनकी कुछौ समझि ना आय।।


Friday, June 27, 2014

मेरा मोबाइल नंबर




नौ ग्रह इस ब्रह्माण्ड में, एक ब्रह्म अविकारी।
नौ दुर्गा हैं जग-जननी, अष्ट भुजा की धारी।
शून्य, शून्य में खोकर ऋषि, करते उसका ध्यान।
तीन लोक ब्रह्माण्ड में दिखते, छः दोषों का ना भान।
कह 'छंदक' कविराय, पांच तत्वों से रचा शरीर।
सप्त ऋषी रह गगन में, हरते सबकी भवबाधा-पीर।।




   

इस युग में अब ना

इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।
जनकनन्दिनी के सुहाग-वर, तुलसी के रघुरइया।।

राजमहल की जगह मिलेंगे, अब बहुतेरे मंदिर।
सेवक-दासों की जगह दिखेंगे, सैनिक उनके अंदर।
वचन न मांगेगी दशरथ से, बेटे को कट्टा देगी मइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।

पुष्प वाटिका जहाँ बनी थी, अब मॉल बने बहुतेरे।
पहने जीन्स किशोर-किशोरी, अब करते पग फेरे।
जनकलली ना होगी वहॉँ पर, ढूँढना लव-लेटर लिखवइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।

पहुँच गए जो गंग तीर, तो बहुत दुर्दशा होगी।
केवट नाव चलाना छोड़कर, बन गया अब तो भोगी।
होटल-बार चलाता है वह, अब ना लाएगा नइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।

भाई का भायपन न दिखेगा, सब तो लड़ते होंगे।
लखन-शत्रुघन बन्दूकें लेकर, अहं में भिड़ते होंगे।
तात से जबरन लिखवाके वसीयत, करेंगे टा-टा भइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।

पवन पुत्र हनुमान सुनो अब, वन मेँ नहीँ मिलेंगे।
डब्लू-डब्लू-ई की रेशलिंग में, अबतो वहीँ दिखेंगे।
करके फिर आई एस डी कॉल तुम, बुलवाना रघुरइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।

हे मर्यादा पुरुषोत्तम रावण तुमको, अब लंका में नहीं मिलेगा।
रखके अनेकों रूप सब जगह, कन्याओं को डसता होगा।
कैसे मरेगा अब यह पापी, विभीषण की बन गया भूल-भुलइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।


           

Wednesday, June 25, 2014

भगवन भी मिल जायेंगे














तीर्थ जाने से सब पाप धुल जायेंगे।
जप- तप करने भोले भी हिल जायेंगे।
आंसू माता-पिता का अभिशाप है,
उनकी सेवा से भगवन भी मिल जायेंगे।।

बबूल की डाल पर कोयल रहती नहीं।
सूखे गन्ने से रस धार बहती नहीं।
जेब तंगी में जब अपनी रोने लगे ,
प्रेयसी प्यार से प्रियतम कहती नहीं।।

Monday, June 23, 2014

मुक्तक






बेचैन धरती की आहें बादलों को पता।
प्रेमी अपने की सूरत पागलों को पता।
प्यार का मीठा अहसास होता है क्या,
अपने पंख खोकर पतंगा है देता बता।।










जब दीपक मिला ख़ुशी से खिल गयी।
प्यार में वो उसके गले मिल गयी।
साथ चलने  में खुद को सोचे बिना,
बाती खुद को जला ख़ाक में मिल गयी।।









साथ सरिता के वो संग-संग चलने लगे।
प्रेम के बीज उनके मन में पलने लगे।
घावों का मोल कोई न सिंधु के सामने,
हंस के उसमें मिली वो हाथ मलने लगे।।




Thursday, June 19, 2014

कांटे वन के मिले














कांटे वन के मिले, राज उसको नहीं,
सारी नगरी आंसुओं में डूबती ही रही।
पुत्र राघव सा न मिलता दशरथ को जो,
उनके सत्य संकल्प को कौन करता सही।

राह  की कोर पर जो चले संग में,
ऐसे साथी हैं सबको मिलते नहीं।
संग जिसको दिया-बाती जैसा मिला,
पाँव उसके धरा पर हैं जलते नहीं।

चैन भी, साँस भी उसके बस में नहीं,
पाँव मंजिल पर सीधे चले जाते हैं।
साथ उसके जब हो सीता जैसी कोई,
तलवों में उसके छाले न पड़ पाते हैं।


    

Wednesday, June 18, 2014

मनाने चली






















सुख, वैभव से अब कोई मतलब नहीं।
नाते-रिश्तों से मीरा को मतलब नहीं।
प्याला विष का पिया ख़ुशी से इसलिए,
श्याम संग हैं तो दुनिया से मतलब नहीं।।

रूप राधा के जैसा है उसने धरा।
प्रेम उससे भी दुगना है उसमें भरा।
राधा के प्रेम से मेरा कम तो नहीं,
भक्ति का अनवरत सिंधु उसने भरा।।

राग वीणा पर अब वो गाने चली।
बनके जोगिन अब इस बहाने चली।
प्रेम पूरित नयन और भक्ती सहित ,
श्याम अपने को अब वो मनाने चली।।


Monday, June 16, 2014

जयंत की धृष्टता ( मानस कृपा )





पंचवटी तरु छाँह बहु, सुषमा सुखद ललाम।
जीव-जंतु सब सुखी तंह, बास करति जंह राम.
बास करति जंह राम, श्री बनि आई सिय प्यारी।
दिन-दिन बढ़ै चन्द्र सों, महिमा अति अबतो न्यारी।
कह 'छंदक' कविराय, लखन निज प्रण ना भूले।
चहुँ दिसि चढ़ो बसंत, जूही, चम्पा, कचनार हैं फूले।।

वह बैरागी भेष में, सेवक पन लियो धारि।
यह रघुवंशी पुत्र है, कौन सकै पथ टारि।
कौन सकै पथ टारि, राम रच्छा प्रण लीन्हों।
पिता तुल्य उन मानि, मारग पर चलि दीन्हों।
कह 'छंदक' कविराय, लखन धनु हाथे लीन्हें।
सियराम चरण मन लाग, वो ना निज को चीन्हें।।

फिरहूँ रघुबर सीय संग, जब बैठे सिला सुबास।
पुष्प सँवारति केश के, सिय को तनिक न त्रास।
सिय को तनिक न त्रास, तब इंद्र पुत्र तंह आयो।
जनु धनु से छूटो बाण, काक बनिकै वह धायो।
कह 'छंदक' कविराय, सीय पग चोंच है मारी।
जो कीन्ह सिय पर घात, करै को वहिकी रखवारी।।

जयंत तबहिं भागा तुरत, राम दियो तृण तानि।
बान सरिस छोड़ो उसे , राघव अब कस मानि।
राघव अब कस मानि, घृणित कार्य तेहि कीन्हा।
करि सिय पग को घायल, रघुबर से बैर है लीन्हा।
कह 'छंदक' कविराय, ऐसो लोक कतहुँ को नाहीं।
रघुबर से जो करत बैर, देत वहिको निज छांही।।

सकल लोक घूमति फिरो, पाछे तेहि के वो त्रान।
रच्छा को वहिकी करै , कौन बचावै तेहि प्रान।
कौन बचावै तेहि प्रान, भोले ने भी करि दी नाहीं।
व्याकुल बहुतै मन मांहि, जांउ केहि ढिग पाहीं।
कह 'छंदक' कविराय, दिखे मग नारद जी आवत।
तोहि रामहि सकैं बचाइ, कहूँ ना तुमरो भला देखावत।।











   

Sunday, June 15, 2014

बस ! अब और नहीं








    













दुष्कर्म जनित घटनाओं से, कलुषित होत समाज।
नीच , छिछोरे पुरुष मिलि, घृणित करति हैं काज।
घृणित करति हैं काज, नारिन पर उइ घात लगावैं।
दें बच्ची कहूँ तौ मारि, कहूँ तरुवर डारै लटकावैं।
कह 'छंदक' कविराय, पुरुष यह गिरिगे बहुतै नीचे।
काम पूर्ति हित भाय , लागि रहे बच्चिन का खींचे।।

कहुँ बस पर तौ लुटि रही, कहूँ खेतन मा मरजाद।
निशा-दिवस देखत नहीं, निज सुता न आवै याद।
निज सुता न आवै याद, वो घ्रणित करति हैं काज।
तड़पै बेटी तेहि समय , जनु जकरि लियो है बाज।
कह 'छंदक' कविराय, अब ऐसे बाजन का मारौ।
यहु गंदा होति तलाव, घास यह महुरही उखारौ।।

अब कैसे रच्छा करी , निज बच्चिन की यार।
मातु -पिता सोचति सबै, यह उल्टा चली बयार।
यह उल्टा चली बयार, राह कोउ नजरि न आवै।
जेहि पर करौ यकीन , वहै तौ छुरा चलावै।
कह 'छंदक' कविराय, पुरुष अब तौ अस बाढ़े।
डारौ कानूनी तुम फंदा, फांसी लटकाओ ठाढ़े।।

जिन पर बीतति है सुनौ, उनको कस मिले चैन।
सिसकें-तड़पें राति-दिन, मुख नहीं आवति बैन।
मुख नहीं आवति बैन, जीवन नरकै अस लागै।
जरति है यह तौ राह , को हाथ सुता का मागै।
कह 'छंदक' कविराय, मानौ यहु जइसे दुःख्वाब।
सुता होइ पांवन खड़ी, फिरि उनका मिले जवाब।।











Wednesday, June 11, 2014

पंचवटी में राम ( मानस कृपा )








































चित्रकूट प्रभु बास करि, पहुंचे गोदावरि तीर।
पवन चलै शीतल सुखद, पावन निर्मल नीर।
पावन निर्मल नीर, ठाँव रघुबर मन भायो।
बास करौं यहि जगह, सीय की सहमति पायो।
कह 'छंदक' कविराय, लखन दुःख बूड़त जावैं।
ये अवधपुरी के लाल, अरण्य में कष्ट उठावैं।।

चक्रवर्ति थे जनक मम, राम सरिस हैं भाय।
लाल-लड़ैते मातु सुत, विधि को नहीं सुहाय।
विधि को नहीं सुहाय, कैकयी की गै मति मारी।
अवध राजि की शांति को, निगल गयी महतारी।
कह 'छंदक' कविराय, लखन कुंठित अति होवै।
सिय भावज राजकुमारि, कस वन में दुःख ढोवै।।

पंचवटी में यहि तरह , क्लेश , छोभ - सन्ताप।
दशरथ के सुत सहि रहे, पावस , ठंढक - ताप।
भानु यहूँ निज शौर्य का, परिचय देत अपार।
राजवंश मुख झरि रहो , अविरल सीकर धार।
कह 'छंदक' कविराय, राम जब देखी सिय को।
जनक सुता कोमलांग, सनि सीकर देखै पिय को।।

तब रघुबर इच्छा समझि, लखन करत हैं काज।
बाँधति वो तृण ठांठरी, इहाँ न सेवक राज समाज।
पर्णकुटी को रचि रहे , जँह रहिहैं प्रिय सिय-राम।
यह तन अर्पित है उन्हें ,  बस हमें राम सों काम।
कह 'छंदक' कविराय, सिखावैं लखन जगत को।
इस तन से लो तुम काम,सिय रघुबीर भगत को।।    



Tuesday, June 10, 2014

गंग तीर अब राम ( मानस कृपा )






















एक दिन जान्हवी घाट पर, पहुँचि गए प्रभु राम।
लखन लाल हैं संग तंह ,औ जनकलली सुखधाम।
औ जनकलली सुखधाम, थकित चलने से लागै।
मस्तक टपकति सीकर, ग्रीव पानी  को मांगै।
कह 'छंदक' कविराय, मन में तब सोचें रघुराई।
भार्या बहुतै कष्ट में, कस  गंगा के पारै जाई।।

ध्यान दियो तब गंग बिच, केवट परो देखाय।
दिनकर के वहु ताप से, बहुतै गयो झुलसाय।
बहुतै गयो झुलसाय, तबै रघुराई गोहरावै।
ओ भइया मेरे मीत , तनि नइया लइ आवै।
कह 'छंदक' कविराय, वहु जानो प्रभु है आयो
करि अतीत को ध्यान, उन संग रारि बढ़ायो।।

केवट बोलै बैन फिरि, नाव लै ना आवैं तीर।
धयान करो माता हमें, धक्का दीन्ह्यो छीर।
धक्का दीन्ह्यो छीर, यहि कारन हम ना आवैं।
तुम तो तारणहार , पार खुद ही होइ जावैं।
कह 'छंदक' कविराय, राम-सीता तन ताकैं।
कच्छप को कीन्हो दूर, आज बहुतै मन-माखैं।।

मनुहार कियो जब राम ने, तब केवट बोले बैन।
शर्त हमारी एक है प्रभू , तिरछे करि निज नैन।
तिरछे करि निज नैन, भक्त निज आस उचारै ।
करि जान्हवी के पार , बात अपनी कहि डारै।
कह 'छंदक' कविराय,  पार हम गंगा के कीन्हा।
विनती एक प्रभु राम, पार भवसागर करि दीन्हा।।   

   

Monday, June 9, 2014

मग में राम ( मानस कृपा )






















दिनकर को परताप यह, आतम अमित है ताप।
राघवेंद्र प्रकटे रघुवंश में, जिनको अमिट प्रताप।
जिनको अमिट प्रताप, वन-गमन जब है कीन्हा।
उनको भी निज शौर्य का, रवि ने परिचय दीन्हा।
कह 'छंदक' कविराय, भ्राता, अर्द्धांगिनी है संग में।
अतिसय बढ़ो है ताप, थकित भे सबतो मग में।।

ध्यान दियो फिरि राम ने, भार्या थकित देखाय।
सूर्य किरण के शौर्य से,मुख आभा गै कुम्हलाय।
मुख आभा गै कुम्हलाय, ओंठ फिरि सूखे अब तो।
तब एक गांव परो दिखाय, रुके फिरि तीनों तब तो।
कह 'छंदक' कविराय, तहाँ ग्राम-नारी सब पूछें।
भगिनी जाओ कहँ को साथ, नात को इनसे बूझें।।

परिचय दे रहि मैथिली, तब प्रभु मन में मुस्काय।
गौर-वर्ण हैं देवर मम, तिन काँधे धनुष सुहाय।
तिन काँधे धनुष सुहाय, सांवरे जो दिखते प्यारी।
मुख घूँघट कोर दबाइ, सैनन कह्यो वो मेरे भरतारी।
कह 'छंदक' कविराय, नारी निज हाथन नीर पिआवें।
आवभगत बहुतै करैं, सब अपने सोये भाग्य जगावें।।

Sunday, June 8, 2014

तपै मृगशिरा






तपै मृगशिरा जून में, सोवति सुनो बयार। 
दिनकर के अब ताप से, बहै पसीना यार।
बहै पसीना यार, जीव सब ब्याकुल लागै,
छोड़ै आपन ठौर, छाँह के तन सब भागै।
कह 'छंदक' कविराय, बाल, महिष औ नारी।
इन्हें सतावति है बहुत, यह तौ गर्मी भारी।।

इह सूरज के ताप से, मिलै न जिव को चैन।
ऐसे में मनई सुनौ, कस बोलै मीठे बैन।
कस बोलै मीठे बैन, बात माहुर अस लागै,
भइया यह तौ पत्नी, अब बिलारि अस भागै।
कह 'छंदक' कविराय, यहु बस में ना है भाई।
बरसै ना जब तक पानी, पारा यहु चढ़तै जाई।।     

Thursday, June 5, 2014

बच्चा बना देती




प्यार में इतनी शक्ति होती है यारों,
जो झूठे को भी सच्चा बना देती है।
अपने  पर जो आ जाय  तो यारों,
खूसट बूढ़े को भी बच्चा बना देती है।।

लहरें ऊँचे उठकर इस जमाने को,
समंदर की गहराई बता देती हैं।
प्यार इससे भी गहरा होता सुनो,
नदियां उससे से मिल ये सिखा देती हैं।।

किसी ने बोला ये झील सी आखें,
किसी ने सागर भी इनको नाम दिया।
उफ़ कोई कैसे रहे सुकूं में सुनो,
इन्होंने कितनों है क़त्लेआम किया।। 

विश्व-पर्यावरण दिवस पर





















तरु छाँव जो देते तुम्हें हैं सदा,
उनके प्रति अब प्रीति दिखाओ।
फल देकर स्वाद बढ़ाते जो सुनो,
उनके भी अब तुम गुण गाओ।
जब तुमने धरा पग धरती पर,
तब से इस संग को ना बिसराओ।
बिन मांगे जो देता तुम्हें है सदा,
इस तरु को ना ऐसे तुम ठुकराओ।।

अब बंद करो तुम तरु मर्दन को ,
प्रीति का ऐसे ना मोल चुकाओ।
अब हाथ गहें न कुल्हाड़ी कभी ,
मन में तुम इस कसम को खाओ।
अरि जैसा कुकृत्य करें न कभी ,
निज मन में अब गांठ बँधाओ।
यह जीवन सार्थक होगा तभी ,
जब एक-एक पेंड़ धरा पे लगाओ।।


Tuesday, June 3, 2014

पतंगें उड़ी
















मौसम जीवन में बदले बहुत हैं मग़र।
पाँव घर से तो निकले बहुत हैं मग़र।
मंजिल सबको मयस्सर होती नहीं ,
इश्क़ की राह पर कितने टूटे ज़िगर।।

लैला-मजनू हुए, हीर -राँझा हुए।
दिल कितनो के अबतक साँझा हुए।
इस फलक़ पर पतंगें उड़ी साथ में ,
लेकिन हमतो वो कमज़ोर मांझा हुए।। 

कभी कम नहीं















छाँव पथ पर तुझको मिले ना मिले।
फूल दामन में तेरे खिले ना खिले।
जाना मंजिल पर है तुझको मगर ,
ओंठ शिकवे  को तेरे हिले ना हिले।।

साथ कोई न निकले कोई ग़म नहीं।
मौसम जो ना बदले कोई ग़म नहीं।
तपती रेती तुझे जो मिले तो मिले,
पाँव की गति हो तेरी कभी कम नहीं।।

Friday, May 30, 2014

मैं आया शरण तिहारी




भव-बंधन काटो मुरारी,
मैं आया शरण तिहारी।

यमलार्जुन को तुमने तारो।
ऊखल बीच फंसाइ उखारो।
फिरि दर्शन दियो बनवारी।।
मैं आया शरण तिहारी।

तृणावर्त राछस जब आयो।
काली आंधी बनिके छायो।
फिरि पहुँचो धाम तिहारी।।
मैं आया शरण तिहारी।

कंदुक खेल्यो मोहन प्यारे।
नाग कालिया को तुम तारे।
सिर नृत्य कियो गिरधारी।।
मैं आया शरण तिहारी।

कुब्जा भक्तिन एक तिहारी।
गंध-पुष्प की संग्रह कारी। 
तन छुयो कियो सुकुमारी।। 
मैं आया शरण तिहारी।

दुष्ट कंस जो राज्य था करता।
प्रजा के मन में कष्ट था भरता।
वह भी पायो गति तिहारी।। 
मैं आया शरण तिहारी। 
 

Wednesday, May 28, 2014

इनहूँ का देखौ





















ताज पहिर बैठे नमो, हाथै नहीं सुहाय।
मची पेट गुड़गुड़ तबै, पीटें छाती भाय।
पीटें छाती भाय, दिखै अब कुछ ना भाई।
फितरत के बस में सुनो, पासा रहे घुमाई।
कह 'छंदक' कविराय, आदत छूटे ना अबतौ।
खटपट-खटपट होइ जब, मजा फिरि आवै तबतौ।

आदति के बस में सुनो,परै न जिव में चैन।
जिहवा भी बस में नहीं, निकसैं उलटे बैन।
निकसैं उलटे बैन, तीन सौ सत्तर रहे बचाई।
जिनकी बुद्धी है फिरी, उनका को समझाई।
कह 'छंदक' कविराय, भैया अब ना भूकौ।
बहुतै कीन्हेउ राजि, तनि इनहूँ का देखौ।       

Thursday, May 22, 2014

उनसे मिलि आओ






















लड़की देखैं जब सुनौ, ठाढ़े मुँह फैलाय।
सोचैं आकस्मात ही, रसगुल्ला घुसि जाय।
रसगुल्ला घुसि जाय, लार तौ फिरि टपकावैं।
करि जुगाड़ उइ फ़ौरन, शादी की बात चलावैं।
कह 'छंदक' कविराय,जल्दी न छलांग लगाओ।
शादी जो करि चुके, तनि उनसे मिलि आओ।।

आया करो




















याद तेरी मुझे जब सताने लगे,
रूप सागर को अपने दिखाया करो।
चाँदनी जब कली का चुम्बन करे,
उस निशा में प्रिये तुम भी आया करो।।