भव-बंधन काटो मुरारी,
मैं आया शरण तिहारी।
यमलार्जुन को तुमने तारो।
ऊखल बीच फंसाइ उखारो।
फिरि दर्शन दियो बनवारी।।
मैं आया शरण तिहारी।
तृणावर्त राछस जब आयो।
काली आंधी बनिके छायो।
फिरि पहुँचो धाम तिहारी।।
मैं आया शरण तिहारी।
कंदुक खेल्यो मोहन प्यारे।
नाग कालिया को तुम तारे।
सिर नृत्य कियो गिरधारी।।
मैं आया शरण तिहारी।
कुब्जा भक्तिन एक तिहारी।
गंध-पुष्प की संग्रह कारी।
तन छुयो कियो सुकुमारी।।
मैं आया शरण तिहारी।
दुष्ट कंस जो राज्य था करता।
प्रजा के मन में कष्ट था भरता।
वह भी पायो गति तिहारी।।
मैं आया शरण तिहारी।
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