Wednesday, July 30, 2014

ईद मुबारक़ !

















जब मज़हबों की खाई पटे तो ईद हो जाये।
जब बैर की कालिख हटे तो ईद हो जाये।
जब आपसी रिश्ते सलामती की दुआ करें,
फिर दिल से दिल हँसके मिले ईद हो जाये।।

ईद मुबारक़ !   

Wednesday, July 23, 2014

'आजाद' को शत-शत नमन!
















धन्य है वह जननी, जिसने एक ऐसे शिशु को जन्म दिया।
उसने एक छोटे से गांव बदरका, उन्नाव में जन्म लेकर
अपने तिवारी वंश के साथ -साथ, अपने देश को स्वाधीन
कराने के लिए अपनी आहुति दे दी। पंडित चंद्रशेखर तिवारी
'आजाद' का यह देश सदैव ऋणी रहेगा। उनकी जयंती पर
शत-शत नमन।

पीठ पर कोड़ों को सह जो आजाद रहा।
गोरे तिलमिलाते रहे वो आजाद रहा ।
उसकी छाया भी न छू पाये वो जीते जी,
अपनी गोली खा के वह आजाद रहा।।

Thursday, July 17, 2014

सीमा पर लाल तड़पता है

जब उठती हैं टीसें रह-रहकर,
फिर दायाँ अंग फड़कता है।
दुश्मन की गोली से घायल,
सीमा पर लाल तड़पता है।।

घुटनों पर माँ के आँचल में,
गिरकर वंदन करता है।
ऋषि-मुनियों की पावन भूमि,
इस रज से चन्दन करता है।
सीमा पर बेटा रहे अमर ,
ब्रत-उपवास अनेकों साधे थे।
नज़दीक बलायें आ न सकें,
ताबीज़ अनेकों बाँधे थे।
अब तो है उनपर नज़र रुकी,
ओ प्यार उन्ही से छलकता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।

उस माँ ने है जनम दिया,
फिर शोणित में अंगार भरे।
दुश्मन से आँख मिलाने में,
ये लाल कभी भी नहीं डरे।
अमर शहीदों के गौरव की,
जननी ने कथा सुनायी थी।
वह डिगे नहीं  निज कर्मों से,
ऐसी बुनियाद बनायी थी।
मातृभूमि के ऋण के हित,
इस तन से लहू टपकता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।

चाहे बोटी-बोटी कटे जिगर,
पग पीछे नहीं हटाऊँगा।
मैं मातु सिंहनी का सुत हूँ,
यह करके सत्य दिखाऊँगा।
आज अग़र मैं उठ न सका,
फिर कोख़ उसी में आऊंगा।
दुश्मन थर -थर थर्रायेगा,
जब शावक सा मैं धाऊंगा।
'वन्दे मातरम' का बीज मंत्र,
अब धीरे -धीरे रटता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।



Thursday, July 10, 2014

अपने दिल में...






















नाम माला जपे हाथ उनकी ,
जन-जन को ये सिखाये हुए हैं।
यादें उनकी बनाके धरोहर ,
अपने दिल में सजाये हुए हैं।।

हाथ जब भी उठा माँ के ऊपर,
सैलाब बनकर वो आगे बढ़े हैं।
कोई छाया को भी छू न पाए,
इसलिए हंसके फांसी चढ़े हैं।
वक़्त की आँधियाँ जब भी आती,
वे हिचकियाँ बनके आए हुए हैं।।
यादें उनकी बनाके धरोहर ,
अपने दिल में सजाये हुए हैं।

भगत, आज़ाद के पौरुष बल का,
उन गोरे अफसरों ने लोहा था माना।
जो गरजते थे अश्फाक - बिस्मिल,
उबलते शोणित को उनके था जाना।
उनकी सूरत की रच करके मूरत,
अपने मन में बसाये हुए हैं।।
यादें उनकी बनाके धरोहर ,
अपने दिल में सजाये हुए हैं।

बहसीपन औ आतंकी दहसत,
बंद होता नहीं ये सिलसिला है।
भारत का प्यारा हर देशवासी,
मन ही मन में रहा बिलबिला है।
मन्सूबे सच हो उनके  कभी ना,
बारूद सीने में छिपाए हुए हैं।।
यादें उनकी बनाके धरोहर ,
अपने दिल में सजाये हुए हैं।
 

 

Tuesday, July 8, 2014

नारी-नर की सहगामी



















नारी सृष्टी की कर्णधार, इसका तुम सम्मान करो
नारी-नर की सहगामी, इसका मत अपमान करो।

असह्य वेदना सहकर वह, दुनिया में नर को लाती है।
सीने पर लातों को खाकर, बच्चे को दूध पिलाती है।
कौन सहन कर सकता है, नारी में इतनी छमता है।
देवों को भी वह भाती है, 'अनुसूया' में मन रमता है।
ऐसी सहनशील माता के, चरणों में परनाम करो।।
नारी-नर की सहगामी, इसका मत अपमान करो।

साथ चली जब नर के वह, पिता के घर को छोड़ दिया।
पली, बढ़ी जिस घर में वह, उससे मुंह तक मोड़ लिया।
जीवन में हर कष्ट सहन कर, वन 'सीता' जैसी चली गयी।
इस निर्मम दुनिया के हाथों, पग-पग पर वह ठगी गयी।
आँखों में छलके आंसू ना, आँचल को खुशियों से भरो।।
नारी-नर की सहगामी, इसका मत अपमान करो।

घर के आँगन में जिसने, गुड़ियों को अपनी खिलाया था।
पिता रुष्ट भाई से हो जब, खुद पिटकर उसे बचाया था।
प्यार उमड़ता है जब उसमें, राखी बनकर वह आती है।
लेती बलायें भइया की वह, फिर 'कर्मवती' बन जाती है।
हँसता चेहरा रहे बहन का, ऐसी कोई जतन करो।।
नारी-नर की सहगामी, इसका मत अपमान करो।





Monday, July 7, 2014

आँख से....

देशभक्ती की बातें हैं करते बहुत,
'बिस्मिल' से कम हैं कहते नहीं।
वार जब भी हुआ माँ के ऊपर कभी,
आँख से उनके आंसू हैं बहते नहीं।।

स्वेत चोंगा पहन देशभक्ती का वे,
काम माँ के लिए कोई करते नहीं।
लोग उनके लिए चीज़ छोटी बहुत,
वे तो भगवान से भी डरते नहीं।।      

Friday, July 4, 2014

एंकर





एंकर किसी कार्यक्रम की जान होता है।
वह प्रतिभागी के लिए महान होता है।
वह लफ़्जों से उतारता है चाँद-तारे भी,
इसलिए वह कार्यक्रम का भगवान होता है।।

वह फीके भोजन में अचार की चटकार है।
तपते रेगिस्तान पर एक ठंडी फुहार है।
इतिहास के भी परखच्चे उड़ा सकता है वो,
वह इस रण बांकुरों की तीख़ी तलवार है।।

वह शान्त तबले की थाप बन जाता है।
वह अनबुझी पहेली की बात बन जाता है।
लहरें समन्दर की कर सकेंगी उसका क्या,
वह डूबती कश्ती की पतवार बन जाता है।।  

Thursday, July 3, 2014

कभी नहीं झुकने देंगे


















गर्वित सीस तिरंगे का हम, कभी नहीं झुकने देंगे।
पावन शब्द शौर्य गाथा के, कभी नहीं मिटने देंगे।

सत्य-अहिंसा के पथ चलकर, जो नींद नहीं सुख की सोया।
साबरमती की कुटिया में रह, खादी के बीज को था बोया।
बापू की यह अमर कहानी, मन से नहीं मिटने देंगे।।
गर्वित सीस तिरंगे का हम, कभी नहीं झुकने देंगे।

सीस मुकुट हिमगिरि जिसका, चरणों को धोता है साग़र।
कल-कल करती गंगा-यमुना, भरतीं अमृत की गागर।
इस मातृभूमि के सब पुत्रों को, कभी नहीं बँटने देंगे।।
गर्वित सीस तिरंगे का हम, कभी नहीं झुकने देंगे।

जिसका शोणित सदा खौलता, सीमा पर वह जाता है
सोकर बलिवेदी की शैय्या, माता का मान बचाता है।
रक्त बूँद की उस लाली को, कभी नहीं छँटने देंगे।।
गर्वित सीस तिरंगे का हम, कभी नहीं झुकने देंगे।
 


Wednesday, July 2, 2014

इनकी चाल














इनकी चाल बहुत है न्यारी,
इनका तुमही  संभारो राम।

मोबाइल लीन्हें दस इन्ची,
वह  जेब को भइया फारे।
ईयरफोन ऊपर ते जोड़ें ,
फिर कान में दूनौ डारे।
बहुतै खुश होवै महतारी।।
इनका तुमही  संभारो राम।

बैठें जब मोटरसाइकिल पर,
फिर वो पॉयलट बनि जावें।
वह ना देखैं सड़क सलोनी ,
झर-झर गाड़ी जोर उड़ावें।
उनका दिखे न और सवारी।।
इनका तुमही  संभारो राम।

तूफानी चाल बहुत है प्यारी,
फिर तो चीता बनिके भागें।
बगल में जेहिके निकसि परै,
फिर यमराज के ऐसे लागें। 
वह सुमिरै हनुमत बलधारी।।
इनका तुमही  संभारो राम।

माने ना वो पिता की एकौ,
गाड़ी सरपट जोर भगावें। 
पकड़े पुलिस चौराहे पर,
फिर डण्डा से समझावें। 
उनकी जीन्स फटी पिछवारी।।
इनका तुमही  संभारो राम।