Monday, April 6, 2015

छंद

जोगी भोग सुहाय नहीं फिर
भोगी कैसे जोग को साधे।
भोगी जोग से भागि रहा
नारि के पल्लू को वह साधे।
जोगी की दृष्टि में भोगी गिरे
फिर जोग से नाता कैसे बांधे।
वृंदावन में जो जोगी जाय बसे
उनहूँ निसि दिन रटते राधे-राधे।



Wednesday, February 18, 2015

छन्द

जो आतप, शीत सहै निशि-वासर
वह शक्ती माँ में ही हो सकती है.
जो कष्टन में निज को राखि सकै
वह छमता माँ में ही हो सकती है.
जो लाल की ढाल सदा ही बनै,
वह दृढ़ता माँ में ही हो सकती है.
जो पग वार सहै निज छाती पर,
वह ममता माँ में ही हो सकती है.


     

Tuesday, January 20, 2015

झकझोर रहा पछुआ अब तो,
दाँत सितार बजावति हैं।
चीरि करेजा रहा अब शीत ,
यहु आपन रूप दिखावति है

 

Friday, January 16, 2015

छंद

बालक, वृद्ध, युवा, सारंग
इन पर असर देखाय रहा है।
कोहिरा-पाला गण यहिके,
उनका अब अजमाय रहा है।
हांडन बीच घुसति पछुआ ,
भीतर ते यार हिलाय रहा है।
निर्दयी बहुत यहु शीत भवा,
कसाई अस गला दबाय रहा है।