Monday, August 4, 2014

तुलसी-जयंती

 













 श्रद्धेय संत गोस्वामी तुलसीदास का जन्म श्यामसुन्दर दास और जनश्रुतियों के आधार
पर श्रावण मास, शुक्ल सप्तमी, संवत १५५४ को बाँदा जिले के राजापुर गांव में आत्माराम
दुबे के घर हुआ था. इनकी माता का नाम हुलसी था. तभी तो संत कवि रहीम अपने को रोक
नहीं पाते हैं और उनके मुख से निकल ही पड़ता है -'' सुरतिय,नरतिय,नागतिय, सब चाहति
अस होय. गोद लिए हुलसी फिरैं, तुलसी सों सुत होय.
      जब सारी सृष्टि की माताएं तुलसी के समान पुत्र की कामना करने लगें। तो कुछ ईशवरीय
चमत्कार होना ही था। वही हुआ  तुलसी को ऐसी ''राम-कृपा'' प्राप्त हुई कि भक्ति गंगा में वे गोते
लगाने लगे. उसी का परिणाम हुआ कि उनके द्वारा ''श्री रामचरित मानस'' जैसे भक्तिमार्गी
महाकाव्य की रचना हुई. उससे समस्त जनमानस को 'राम-भक्ति गंगा' में नित्य गोते लगाने
का सुअवसर प्राप्त हुआ. इसकी इतनी सरल भाषा, जिसने सभी लोगों के मन को अपनी ओर
आकर्षित कर लिया। तभी तो संत तुलसीदास हिंदी काव्य जगत के चन्द्रमा हो गए. किसी ने
ठीक ही लिखा है- ''सूर-सूर, तुलसी शशी, उडगन केसवदास।
                          अब के कवि खद्दोत सम, जंह-तंह करत प्रकास।।''
     
पावन कुल रघुवंश में जन्म, राम को रूप देखावत को।
वर दन्त की पंगत कुंद कली, ऐसे छन्द को गावत को।
जनकलली लछमी के रूप को, दशरथ-बहू बनावत को।
होत न तुलसी जो जग में, राघवेन्द्र की धार बहावत को।।

किष्किन्धा पर मन मारि रहे, हनु से सुग्रीव मिलावत को।
रामहि राम रटैं जो पवनसुत, राम के दरस करावत को।
दंतन बीच बसे जस जिभिया, विभीषण से राम रटावत को।
होत न तुलसी जो जग में, राघवेन्द्र की धार बहावत को।।

''भक्त प्रवर तुलसीदास की जयंती के अवसर पर उनको कोटिशः प्रणाम''

   

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