दिनकर को परताप यह, आतम अमित है ताप।
राघवेंद्र प्रकटे रघुवंश में, जिनको अमिट प्रताप।
जिनको अमिट प्रताप, वन-गमन जब है कीन्हा।
उनको भी निज शौर्य का, रवि ने परिचय दीन्हा।
कह 'छंदक' कविराय, भ्राता, अर्द्धांगिनी है संग में।
अतिसय बढ़ो है ताप, थकित भे सबतो मग में।।
ध्यान दियो फिरि राम ने, भार्या थकित देखाय।
सूर्य किरण के शौर्य से,मुख आभा गै कुम्हलाय।
मुख आभा गै कुम्हलाय, ओंठ फिरि सूखे अब तो।
तब एक गांव परो दिखाय, रुके फिरि तीनों तब तो।
कह 'छंदक' कविराय, तहाँ ग्राम-नारी सब पूछें।
भगिनी जाओ कहँ को साथ, नात को इनसे बूझें।।
परिचय दे रहि मैथिली, तब प्रभु मन में मुस्काय।
गौर-वर्ण हैं देवर मम, तिन काँधे धनुष सुहाय।
तिन काँधे धनुष सुहाय, सांवरे जो दिखते प्यारी।
मुख घूँघट कोर दबाइ, सैनन कह्यो वो मेरे भरतारी।
कह 'छंदक' कविराय, नारी निज हाथन नीर पिआवें।
आवभगत बहुतै करैं, सब अपने सोये भाग्य जगावें।।
Atyant sunder, ease likhate rahein.
ReplyDeleteYeh kavita to college ke syllebas me padhane layak hai. I like it.
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