Sunday, June 8, 2014

तपै मृगशिरा






तपै मृगशिरा जून में, सोवति सुनो बयार। 
दिनकर के अब ताप से, बहै पसीना यार।
बहै पसीना यार, जीव सब ब्याकुल लागै,
छोड़ै आपन ठौर, छाँह के तन सब भागै।
कह 'छंदक' कविराय, बाल, महिष औ नारी।
इन्हें सतावति है बहुत, यह तौ गर्मी भारी।।

इह सूरज के ताप से, मिलै न जिव को चैन।
ऐसे में मनई सुनौ, कस बोलै मीठे बैन।
कस बोलै मीठे बैन, बात माहुर अस लागै,
भइया यह तौ पत्नी, अब बिलारि अस भागै।
कह 'छंदक' कविराय, यहु बस में ना है भाई।
बरसै ना जब तक पानी, पारा यहु चढ़तै जाई।।     

1 comment:

  1. Ye kavita padhne ke baad sirt yahi kahunga ki aap surya ki bhaati prakashmaan ho. I like it.

    ReplyDelete