Friday, June 27, 2014

इस युग में अब ना

इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।
जनकनन्दिनी के सुहाग-वर, तुलसी के रघुरइया।।

राजमहल की जगह मिलेंगे, अब बहुतेरे मंदिर।
सेवक-दासों की जगह दिखेंगे, सैनिक उनके अंदर।
वचन न मांगेगी दशरथ से, बेटे को कट्टा देगी मइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।

पुष्प वाटिका जहाँ बनी थी, अब मॉल बने बहुतेरे।
पहने जीन्स किशोर-किशोरी, अब करते पग फेरे।
जनकलली ना होगी वहॉँ पर, ढूँढना लव-लेटर लिखवइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।

पहुँच गए जो गंग तीर, तो बहुत दुर्दशा होगी।
केवट नाव चलाना छोड़कर, बन गया अब तो भोगी।
होटल-बार चलाता है वह, अब ना लाएगा नइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।

भाई का भायपन न दिखेगा, सब तो लड़ते होंगे।
लखन-शत्रुघन बन्दूकें लेकर, अहं में भिड़ते होंगे।
तात से जबरन लिखवाके वसीयत, करेंगे टा-टा भइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।

पवन पुत्र हनुमान सुनो अब, वन मेँ नहीँ मिलेंगे।
डब्लू-डब्लू-ई की रेशलिंग में, अबतो वहीँ दिखेंगे।
करके फिर आई एस डी कॉल तुम, बुलवाना रघुरइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।

हे मर्यादा पुरुषोत्तम रावण तुमको, अब लंका में नहीं मिलेगा।
रखके अनेकों रूप सब जगह, कन्याओं को डसता होगा।
कैसे मरेगा अब यह पापी, विभीषण की बन गया भूल-भुलइया।।
इस युग में अब ना आना रे, ओ लछ्मण के भइया।


           

1 comment:

  1. Ravan to phir bhi achcha tha jo unhe pehchan liya, aaj to sakchhat bhagwan prakat ho jayen to log nahi pehchan sakte. Ghor kalyug hai. Itni sunder aur badi rochak kavita hai.

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