कांटे वन के मिले, राज उसको नहीं,
सारी नगरी आंसुओं में डूबती ही रही।
पुत्र राघव सा न मिलता दशरथ को जो,
उनके सत्य संकल्प को कौन करता सही।
राह की कोर पर जो चले संग में,
ऐसे साथी हैं सबको मिलते नहीं।
संग जिसको दिया-बाती जैसा मिला,
पाँव उसके धरा पर हैं जलते नहीं।
चैन भी, साँस भी उसके बस में नहीं,
पाँव मंजिल पर सीधे चले जाते हैं।
साथ उसके जब हो सीता जैसी कोई,
तलवों में उसके छाले न पड़ पाते हैं।
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