Friday, May 30, 2014

मैं आया शरण तिहारी




भव-बंधन काटो मुरारी,
मैं आया शरण तिहारी।

यमलार्जुन को तुमने तारो।
ऊखल बीच फंसाइ उखारो।
फिरि दर्शन दियो बनवारी।।
मैं आया शरण तिहारी।

तृणावर्त राछस जब आयो।
काली आंधी बनिके छायो।
फिरि पहुँचो धाम तिहारी।।
मैं आया शरण तिहारी।

कंदुक खेल्यो मोहन प्यारे।
नाग कालिया को तुम तारे।
सिर नृत्य कियो गिरधारी।।
मैं आया शरण तिहारी।

कुब्जा भक्तिन एक तिहारी।
गंध-पुष्प की संग्रह कारी। 
तन छुयो कियो सुकुमारी।। 
मैं आया शरण तिहारी।

दुष्ट कंस जो राज्य था करता।
प्रजा के मन में कष्ट था भरता।
वह भी पायो गति तिहारी।। 
मैं आया शरण तिहारी। 
 

Wednesday, May 28, 2014

इनहूँ का देखौ





















ताज पहिर बैठे नमो, हाथै नहीं सुहाय।
मची पेट गुड़गुड़ तबै, पीटें छाती भाय।
पीटें छाती भाय, दिखै अब कुछ ना भाई।
फितरत के बस में सुनो, पासा रहे घुमाई।
कह 'छंदक' कविराय, आदत छूटे ना अबतौ।
खटपट-खटपट होइ जब, मजा फिरि आवै तबतौ।

आदति के बस में सुनो,परै न जिव में चैन।
जिहवा भी बस में नहीं, निकसैं उलटे बैन।
निकसैं उलटे बैन, तीन सौ सत्तर रहे बचाई।
जिनकी बुद्धी है फिरी, उनका को समझाई।
कह 'छंदक' कविराय, भैया अब ना भूकौ।
बहुतै कीन्हेउ राजि, तनि इनहूँ का देखौ।       

Thursday, May 22, 2014

उनसे मिलि आओ






















लड़की देखैं जब सुनौ, ठाढ़े मुँह फैलाय।
सोचैं आकस्मात ही, रसगुल्ला घुसि जाय।
रसगुल्ला घुसि जाय, लार तौ फिरि टपकावैं।
करि जुगाड़ उइ फ़ौरन, शादी की बात चलावैं।
कह 'छंदक' कविराय,जल्दी न छलांग लगाओ।
शादी जो करि चुके, तनि उनसे मिलि आओ।।

आया करो




















याद तेरी मुझे जब सताने लगे,
रूप सागर को अपने दिखाया करो।
चाँदनी जब कली का चुम्बन करे,
उस निशा में प्रिये तुम भी आया करो।।

Thursday, May 15, 2014

चुनावी नतीजा



















इस चुनाव के समर का, गया नतीजा आय ।
बीजेपी तो गदगद भयी, सब पर धूरि उड़ाय।
सब पर धूरि उड़ाय, नजरि अब कोऊ न आवै।
जनता जेहिका चहै, वही संसद का जावै ।
भइया कांग्रेस अब सुनौ, महि पर गिरी धड़ाम।
सुनौ प्रात के सूर्य का, सबही करति प्रणाम ।।




Friday, May 9, 2014

मर्यादा

















बिस्तर पर बैठकर बेड टी पीती जो,
हाय राम कैसी ये देश की तरुणाई है।
अपने सुहाग को जो नौकर है मानती,
पत्नी धरम की फ़िर लुटिया डुबाई है।
कैसे कहूँ ये हैं अनुसुइया के देश की ,
जिसने पतिधर्म की रीति तो चलाई है।
नारी धर्म की  मर्यादा को त्यागकर,
जीन्स-बिकनी में अब घूमती लुगाई है।।

Monday, May 5, 2014

थाने लिया बुलाय


















भइया इक दिन कवी को, थाने लिया बुलाय।
गरजे थानेदार फिर , कविता देउ सुनाय।
कविता देउ सुनाय, आज कुछ ठीक न लागै।
कविता ऐसी होय, चोर ना थाने से भागै।
शर्त सुनी जब कवी ने, गया अँधेरा छाय।
निकसे ना आवाज तब, वह ठाढे हकलाय।।

उठे सिपाही एक फिर, डंडा पटकिन भाय।
साहब हमको एक तो, युक्ती गयी सुझाय।
युक्ती गयी सुझाय, नर्तकी अब एक बुलाओ।
वह तो नाचे- नाच, कविता इससे कहलाओ।
फिर भी कविता ना कहे,इसको देऊ बताय।
पीटै तबला रात भर, औ भडुहा देउ  बनाय।।

Sunday, May 4, 2014

तूने मारी एंट्रियां

















पारा गर्मी का चढ़ा, नाहीं चलत बयार।
अइसे मा पत्नी सुनौ,गावै राग मल्हार।
गावै राग मल्हार, पाँव अब थिर ना होवै।
जब हैं खड़े कगार,उज्वला का कस ढोवै।
मजबूरी मा ही सुनौ, दिल चिहुँकति है यार।
बहुतै गाढ़ा होति है, यहु अस्सी का प्यार।।

तिवारी जी हँसिकै बोले-
तूने मारी एंट्रियां,
तो दिल में बजी घंटियाँ-
टन-टन,टन-टन।  

Thursday, May 1, 2014

जय श्रमिक ! जय भारत !

जय श्रमिक !           जय भारत !















मन पीर को तेरी वो सुने न सुने,
फिर भी तू कभी ना रुकता है।
कल-कारखाने को जो माने मंदिर,
वह सीस वहीँ पर झुकता है।
तेरा पेट भले ही कभी खाली रहे ,
पर श्रम-ताप कभी ना बुझता है।
निज रहने को वास जो बना न सका,
श्रम-पथ पर वह हाथ नहीं रुकता है।

अब थाती हो तुम उन्नति की,
तुमसे ही उन्नति होती सदा।
श्रम बिन्दु न सूखी मस्तक से,
उसकी तो जय-जय होती सदा।
जो अविराम रुका न कभी पथ में,
फिर भी है किस्मत सोती सदा।
जीवन में है बाधाओं का बाँध बना,
फिर भी जय श्रम की होती सदा।