Wednesday, August 20, 2014

दोहे

अपने सब अपने कहैं, मन बहुतै खुश होय।
घाव करैं जब सगे तो, औषधि दिखे न कोय।।

अपनो जीवन हवन करि, सुत को पालै मातु।
जस देखी सारंग नवल, बिसरि गयी तब मातु।।

पूजा, ब्रत सब करि रहे, दीनन को दें दान।
मातु-पिता सेवैं नहीं, जिनते उनको मान।।

पश्चिम के संग चलै में, जर भूलें सब कोय।
हाथ न आवै वहि दिशा, भानु भी डूबा होय।।

सब भाषा सुन्दर गुणी, करो सबका सम्मान।
निज भाषा भूलो नहीं, जिससे देश की शान।।  





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