Sunday, June 15, 2014

बस ! अब और नहीं








    













दुष्कर्म जनित घटनाओं से, कलुषित होत समाज।
नीच , छिछोरे पुरुष मिलि, घृणित करति हैं काज।
घृणित करति हैं काज, नारिन पर उइ घात लगावैं।
दें बच्ची कहूँ तौ मारि, कहूँ तरुवर डारै लटकावैं।
कह 'छंदक' कविराय, पुरुष यह गिरिगे बहुतै नीचे।
काम पूर्ति हित भाय , लागि रहे बच्चिन का खींचे।।

कहुँ बस पर तौ लुटि रही, कहूँ खेतन मा मरजाद।
निशा-दिवस देखत नहीं, निज सुता न आवै याद।
निज सुता न आवै याद, वो घ्रणित करति हैं काज।
तड़पै बेटी तेहि समय , जनु जकरि लियो है बाज।
कह 'छंदक' कविराय, अब ऐसे बाजन का मारौ।
यहु गंदा होति तलाव, घास यह महुरही उखारौ।।

अब कैसे रच्छा करी , निज बच्चिन की यार।
मातु -पिता सोचति सबै, यह उल्टा चली बयार।
यह उल्टा चली बयार, राह कोउ नजरि न आवै।
जेहि पर करौ यकीन , वहै तौ छुरा चलावै।
कह 'छंदक' कविराय, पुरुष अब तौ अस बाढ़े।
डारौ कानूनी तुम फंदा, फांसी लटकाओ ठाढ़े।।

जिन पर बीतति है सुनौ, उनको कस मिले चैन।
सिसकें-तड़पें राति-दिन, मुख नहीं आवति बैन।
मुख नहीं आवति बैन, जीवन नरकै अस लागै।
जरति है यह तौ राह , को हाथ सुता का मागै।
कह 'छंदक' कविराय, मानौ यहु जइसे दुःख्वाब।
सुता होइ पांवन खड़ी, फिरि उनका मिले जवाब।।











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