Sunday, August 13, 2017

श्री कृष्ण जन्माष्टमी

शुभ लगन भयो है कृष्ण पाख,
भादों की अब अष्टमी आयी.
राति अंधेरी समय सुहावन,
घनघोर घटा नभ में है छायी.
कांट, करील औ कुंज भये सब,
मुनि विप्रन ने फिर टेर लगायी.
देवकी कोख को धन्य कियो,
कान्हा जैसो है नाम धरायी.

दुष्ट दलन महिमंड़न के हित,
गोकुल आये हैं कृष्ण-कन्हाई.
वृषभान लली जो राधा भयी,
लीला करी फिर रास रचाई.
ब्रजमण्डल की रज धन्य कियो,
गोवर्धन को अंगुरी पे धराई.
आओ पुन: यहि भारत में फिर,
राजनीति की भाषा देउ पढ़ाई.

- छन्दक

Thursday, August 3, 2017

मन अपने बहुत गुमान भरे,








मन अपने बहुत गुमान भरे,
गर्जन मुँह फारि करै बदरा.
 जनु सेन सजाइ के राजा सों,
 रन बीच में आइ भिरै बदरा.
 जो खींचै म्यानते असि चपला,
 चिंघरै, तड़पै औ बरसै बदरा.
 परदेस बसैं हमरे तौ सजन,
 हिय टीस उठै औ जरै बदरा.

जिउ तोर तौ पाहन अस लागै,
हिय मोरि कसक न लखै बदरा.
निज काज ते तुम लागति ऊबे,
अब काज तौ मोर करौ बदरा.
हलकान भयी जिउ हूक उठै,
तन सूखि कै कांट भयो बदरा.
मोबाइल लागति नहिं उनको,
हिय प्रीति को पानी भरौ बदरा.







बूंदन बान लगैं हिय पर,
   अब बेधि रहीं सगरो बदरा.
   बरिआई न तुमसों है कोऊ,
  फिरि काहे कलेस तू दे बदरा.
   काज दियो तुमको इक छोट,
   वोहू न तुमसों सपरो बदरा.
   सांस -उसांस तौ मोरी भई,
   पिय बिन को रोग हरै बदरा.

   - छन्दक