तरु छाँव जो देते तुम्हें हैं सदा,
उनके प्रति अब प्रीति दिखाओ।
फल देकर स्वाद बढ़ाते जो सुनो,
उनके भी अब तुम गुण गाओ।
जब तुमने धरा पग धरती पर,
तब से इस संग को ना बिसराओ।
बिन मांगे जो देता तुम्हें है सदा,
इस तरु को ना ऐसे तुम ठुकराओ।।
अब बंद करो तुम तरु मर्दन को ,
प्रीति का ऐसे ना मोल चुकाओ।
अब हाथ गहें न कुल्हाड़ी कभी ,
मन में तुम इस कसम को खाओ।
अरि जैसा कुकृत्य करें न कभी ,
निज मन में अब गांठ बँधाओ।
यह जीवन सार्थक होगा तभी ,
जब एक-एक पेंड़ धरा पे लगाओ।।
Vishva Paryavaran Diwas ki ye jhalak bahut sundar dhang se prastut karne ke liye dhanyavaad. I like it.
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