जब उठती हैं टीसें रह-रहकर,
फिर दायाँ अंग फड़कता है।
दुश्मन की गोली से घायल,
सीमा पर लाल तड़पता है।।
घुटनों पर माँ के आँचल में,
गिरकर वंदन करता है।
ऋषि-मुनियों की पावन भूमि,
इस रज से चन्दन करता है।
सीमा पर बेटा रहे अमर ,
ब्रत-उपवास अनेकों साधे थे।
नज़दीक बलायें आ न सकें,
ताबीज़ अनेकों बाँधे थे।
अब तो है उनपर नज़र रुकी,
ओ प्यार उन्ही से छलकता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।
उस माँ ने है जनम दिया,
फिर शोणित में अंगार भरे।
दुश्मन से आँख मिलाने में,
ये लाल कभी भी नहीं डरे।
अमर शहीदों के गौरव की,
जननी ने कथा सुनायी थी।
वह डिगे नहीं निज कर्मों से,
ऐसी बुनियाद बनायी थी।
मातृभूमि के ऋण के हित,
इस तन से लहू टपकता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।
चाहे बोटी-बोटी कटे जिगर,
पग पीछे नहीं हटाऊँगा।
मैं मातु सिंहनी का सुत हूँ,
यह करके सत्य दिखाऊँगा।
आज अग़र मैं उठ न सका,
फिर कोख़ उसी में आऊंगा।
दुश्मन थर -थर थर्रायेगा,
जब शावक सा मैं धाऊंगा।
'वन्दे मातरम' का बीज मंत्र,
अब धीरे -धीरे रटता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।
फिर दायाँ अंग फड़कता है।
दुश्मन की गोली से घायल,
सीमा पर लाल तड़पता है।।
घुटनों पर माँ के आँचल में,
गिरकर वंदन करता है।
ऋषि-मुनियों की पावन भूमि,
इस रज से चन्दन करता है।
सीमा पर बेटा रहे अमर ,
ब्रत-उपवास अनेकों साधे थे।
नज़दीक बलायें आ न सकें,
ताबीज़ अनेकों बाँधे थे।
अब तो है उनपर नज़र रुकी,
ओ प्यार उन्ही से छलकता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।
उस माँ ने है जनम दिया,
फिर शोणित में अंगार भरे।
दुश्मन से आँख मिलाने में,
ये लाल कभी भी नहीं डरे।
अमर शहीदों के गौरव की,
जननी ने कथा सुनायी थी।
वह डिगे नहीं निज कर्मों से,
ऐसी बुनियाद बनायी थी।
मातृभूमि के ऋण के हित,
इस तन से लहू टपकता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।
चाहे बोटी-बोटी कटे जिगर,
पग पीछे नहीं हटाऊँगा।
मैं मातु सिंहनी का सुत हूँ,
यह करके सत्य दिखाऊँगा।
आज अग़र मैं उठ न सका,
फिर कोख़ उसी में आऊंगा।
दुश्मन थर -थर थर्रायेगा,
जब शावक सा मैं धाऊंगा।
'वन्दे मातरम' का बीज मंत्र,
अब धीरे -धीरे रटता है।।
दुश्मन की गोली से घायल ,
सीमा पर लाल तड़पता है।
Deshbhakti ki kavita me aapka javab nahi. Kya baat hai Chhandak Ji.
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