Thursday, August 7, 2014

बिटिया

घर-आँगन जब सब सूना था,
बनके एक फूल खिली बिटिया।
मुस्कान पिता की वह बनकर,
मातृत्व के साथ पली बिटिया।
पुतली माँ-बाप के नयनों की,
नन्हें कदमों पे चली बिटिया।
सप्त-राग मधुर पैजनियों के,
लगती रुनझुन में भली बिटिया।।

गुड़ियों को रखकर बिस्तर पर,
स्कूल को जब जाती बिटिया।
विश्वास पिता का अडिग रहे,
ट्रॉफी संग में लाती बिटिया।
माँ की ममता औ सीखों से,
सम्मान बहुत पाती बिटिया।
शिच्छा के चरम आसमां पर,
ध्रुवतारा बन जाती बिटिया।।

हो अन्धकार जहाँ भी कोने में,
फिर दीवाली बन जाती बिटिया।
काली बदरी बन सावन की ,
स्नेह फुहार बरसाती बिटिया ।
खुशबू से घर-बाहर अपनी ,
महर-महर महकाती बिटिया।
कष्ट किसी पर जब भी आए,
मदर टेरेसा बन जाती बिटिया।।

जन्मदात्री माँ से अलग जब,
पति के घर को जाये बिटिया।
अपनी श्रद्धा, सेवा के भरोसे ,
प्यार सभी का पाये बिटिया।
पति के कुल को श्रेष्ठ समझ,
उसका मान बढ़ाये बिटिया।
नज़र उठे जब कुल पर कोई,
दुर्गा फिर बन जाये बिटिया।।

पुत्र की आस को मन में रख,
कैसे नर हरने चले बिटिया।
बन शत्रु गर्भ पर वार करें ,
फिर भ्रूण में कैसे पले बिटिया।
निर्मोही, निर्मम, हत्यारे वे,
अपने ही कर से छले बिटिया।
अब रोये धरा औ अम्बर भी,
अपनों के हाथ जले बिटिया।।



  

 

1 comment:

  1. Bitiya ki shakh bachawan ko bhi achchi kavita banawat ho. chhandak kavi ji ab to bahut ho gaya, kahe nahi apni kavita chhapawat ho. Last para is very meaningful.

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