Friday, August 1, 2014

घनराज सुनौ

घनराज सुनौ अरदास मोरि,
बूंदन कइ बान चलाइ देउ।
हमरी आंखी पथराइ गयीं,
अब आस पिआस मिटाइ देउ।

खेतन कइ छाती दरकि रही,
बेहन सबै मुरझाइ गयी।
रोपनी कै जिव मा ललक रहै,
तुमरी किरपा ते बुझाइ गयी।
आँखिन मा जाला है परिगा,
तुमरी अब राहै देखै मा।
खेतै मा चक्कर काटि रहेन,
छाला अब परिगे पांवै मा।
अब तौ गति पपिहा अस होइगै,
तनि पानी कै धार गिराइ देउ।।
घनराज सुनौ अरदास मोरि,
बूंदन कइ बान चलाइ देउ।

तुम लुकाछिपी अब खेलि रहेउ,
घरवाली जइसे मुहिंका झांपै।
खेतै मा गन्ना अपनी जर ते,
तुमरे बिन थर-थर-थर कांपै।
मेहरारू अब तौ बार -बार,
नाकै की झुलनी मांगि रही।
खोंसि मोबाइल झोरा मा,
रोजइ मइके भागि रही।
वादा कीन धानन पर हम,
तनि हमरिउ लाज बचाइ लेउ।।
घनराज सुनौ अरदास मोरि,
बूंदन कइ बान चलाइ देउ।

इंजन बोरिंग पर बांधेन,
ठोंक-पीट तौ करे रहेन।
तुमरी बेरहमी का हमतौ,
लागति ब्याजै भरे रहेन।
कइसे डारी यहिके पेटे,
डीजल बहुतै मंहग भवा।
ससुरी मंहगाई डायन का,
यहुतौ बेटवा सगा भवा।
मगज कुन्द भै अब हमारि,
तनि धक्का मारि चलाइ देउ।।
घनराज सुनौ अरदास मोरि,
बूंदन कइ बान चलाइ देउ।  

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