बम-बम, बम-बम छोड़े वोटर
चढ़ा चुनावी रंग, -बोलें नमो-नमो।
काशी के वासी कैलाशी,
जन-जन में दिख रही उदासी।
गड्ढे-खंदक गले की फांसी,
गंग तीर भी रहे पिआसी।
हो गयी अब तो तंग, -बोलें नमो-नमो।
अब तक अगुआ जो भी आया,
इसके दर्द समझ ना पाया।
उचित दवाई कोई न लाया,
उल्टे उसमे ज़हर मिलाया।
घोर पिला दी भंग, -बोलें नमो-नमो।
है विकास की बात जो करता,
दुखियों के सिर हाथ जो धरता।
दुष्ट पडोसी से जो ना डरता,
आशा की किरणें जो भरता।
अब हो गए उसके संग, -बोलें नमो-नमो।
No comments:
Post a Comment