जय श्रमिक ! जय भारत !
मन पीर को तेरी वो सुने न सुने,
फिर भी तू कभी ना रुकता है।
कल-कारखाने को जो माने मंदिर,
वह सीस वहीँ पर झुकता है।
तेरा पेट भले ही कभी खाली रहे ,
पर श्रम-ताप कभी ना बुझता है।
निज रहने को वास जो बना न सका,
श्रम-पथ पर वह हाथ नहीं रुकता है।
अब थाती हो तुम उन्नति की,
तुमसे ही उन्नति होती सदा।
श्रम बिन्दु न सूखी मस्तक से,
उसकी तो जय-जय होती सदा।
जो अविराम रुका न कभी पथ में,
फिर भी है किस्मत सोती सदा।
जीवन में है बाधाओं का बाँध बना,
फिर भी जय श्रम की होती सदा।
मन पीर को तेरी वो सुने न सुने,
फिर भी तू कभी ना रुकता है।
कल-कारखाने को जो माने मंदिर,
वह सीस वहीँ पर झुकता है।
तेरा पेट भले ही कभी खाली रहे ,
पर श्रम-ताप कभी ना बुझता है।
निज रहने को वास जो बना न सका,
श्रम-पथ पर वह हाथ नहीं रुकता है।
अब थाती हो तुम उन्नति की,
तुमसे ही उन्नति होती सदा।
श्रम बिन्दु न सूखी मस्तक से,
उसकी तो जय-जय होती सदा।
जो अविराम रुका न कभी पथ में,
फिर भी है किस्मत सोती सदा।
जीवन में है बाधाओं का बाँध बना,
फिर भी जय श्रम की होती सदा।
Hindi aur Avadhi par aapki achhi pakad hai shuklaji. Very good.
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