Wednesday, April 16, 2014

चुनावी दंगल 5

कॉलबेल अचानक घनघनाई
बीवी हमारे ऊपर भनभनाई।
देखो-देखो कोई आया है
किसी ने तुम्हारा पता बताया है।
मैं बिना बोले ही उठ गया
दरवाजे से जाकर सट गया।
फिर मैंने दरवाजा खोल दिया
बाहर से किसी ने जिंदाबाद बोल दिया।
मेरी आँखें चकमका गयी
फिर पूरा यकीन दिला गयी
सामने वही नेता जी खड़े थे
जिनकी मूछों के बाल थोड़ा बढे थे
देखने में रावण के खानदानी हैं
लेकिन आज बिल्लकुल पानी-पानी हैं.
मुस्कराहट चार इंच बढ़ गयी है
सियासत आज सिर चढ़ गयी है।
उनके चन्टे-बंटों ने पर्चा आगे बढ़ाया
और जोर देकर चुनाव निशान दिखाया।
अब आपका वोट बहुत जरूरी है
बाकी सब तैयारी तो पूरी है।
तैयारी सुन मैं कुछ चकरा गया
नेताजी का काफिला आगे चला गया।
पिछले चुनाव में भी जुगति लगायी थी
उसी से अपनी सीट हथियाई थी।
तब तो कोई आह सुनाई न दी थी
किसी की लाचारी दिखाई न दी थी।
पांच साल पलक झपकते बीत गए
इन दंगों में न जाने कितनो के मीत गए.
तब इनको वोटर नज़र न आया था
मानो बन्दर ने उस्तरा पाया था।
आज फिर वोटर को भगवान बताते हैं
उसके चरणों में सीज़न भर लोट लगाते हैं।  

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