मन मोर कुलांच भरै मृग सों
हिय टीस उठै अब फागुन में.
पिय जाइ बसे परदेस सखी
सुधि लेंइ नहीं अब फागुन में.
धरि धीर रहौं कबलौं हे सखी
हिय आगि जरै अब फागुन में.
कॉल सबै मिस कॉल भयीं
सुर नाहिं सुन्यो अब फागुन में .
हिय टीस उठै अब फागुन में.
पिय जाइ बसे परदेस सखी
सुधि लेंइ नहीं अब फागुन में.
धरि धीर रहौं कबलौं हे सखी
हिय आगि जरै अब फागुन में.
कॉल सबै मिस कॉल भयीं
सुर नाहिं सुन्यो अब फागुन में .
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