जइसे जरै तिलु- तिलु बाती
मन मोर जरै सखि फागुन में.
झकझोर बसंती अंगड़ाइ चलै
सब पात झरैं सखि फागुन में.
मुसकाय रहीं छोटकी बड़की
जनु तीर लगै सखि फागुन में.
परदेसी बने हमरे तौ सजन
ना फोन उठै सखि फागुन में.
पिंजरा कै सुगना ना राम रटै
सुस्ताय दिखै सखि फागुन में.
कलुआ कूकुर ना भूंकि रहा
वहु राह तकै सखि फागुन में.
कैसे कहौं अब अपने जियकी
मनु नांहि टिकै सखि फागुन में.
अब कामु तौ तीर चलाइ रहा
हिय बीच धंसै सखि फागुन में.
राजेश शुक्ला छन्दक
मो. 09198003657
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