Friday, March 3, 2017

ओंकार सदाशिव और हमारी आस्था






ब्रह्माण्ड की रचना जगत नियंता परमेश्वर की इच्छा 
मात्र थी. उसके संचालन हेतु त्रिदेवों को नियुक्त किया. फिर क्या था परमेश्वर की अपनी सरकार का गठन आरम्भ हो गया. इस असीम सत्ता की कैबिनेट में ब्रह्मदेव को सृष्टि की रचना का कार्य सौंपा . उहोंने जलचर, थलचर, नभचर, अंडज,भेषज, कुटज और पंच तत्वों की रचना की. इसके बाद ही जीवों के शरीर, पेंड-पौधों तथा सभी आकारों का निर्माण हुआ .
सृष्टि में रहने वाले सभी जीवों के भरण-पोषण का कार्य भगवान विष्णु को सौंपा गया. हर देहधारी के अंदर की भूख मिटाने और जीवन यापन के साधन भगवान विष्णु ने निर्मित किये. उनके सत्ता संचालन की कला को जानना मानव बुध्दि के परे है.
जगत नियंता द्वारा निर्मित सृष्टि में असंतुलन न उत्पन्न हो पाये इसका कार्य भगवान शिव शंकर को दिया गया. जिन्होंने अपने गणों के द्वारा इस कार्य को संपादित किया. इनके सहायक बने शनिदेव, यमराज और मृत्यु. इसीलिए शिव शंकर को महाकाल की संग्या दी गयी. तत्पश्चात वेेदों,उपनिषदों और पुराणों आदि की रचना हुई. जिससे मानव जीवन सुचारु और निष्कंटक व्यतीत हो सके. 
यह तो बातें हुईं सतयुग की. जगत नियंता ने समय का निर्धारण चतुर्युग के रूप में किया सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग. हम लोग इस समय कलयुग में विचरण कर रहे हैं. भगवान सदाशिव मानव कल्याण के लिए भारतभूमि में बारह स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रकट हुए. जिन्हें बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम से जाना जाता है. जो वर्तमान में भारत देश में स्थित हैं. पुराणों में इनका वर्णन निम्न श्लोकों में किया गया है-

सौराष्टे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्
उज्जयिनां महाकाल ओंकारममलेश्वरम् .

परल्यां बैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने .

वराणस्यां तु विश्वेशम् त्रयंबकम् गौतमीतटे
हिमालये तु केदारं घुश्मेसम् च शिवालये .

(क्रमश:)

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