Thursday, March 16, 2017

कर्म हित पग उठे





ईंटें सिर पर रखे
पांव डगमग उठे.
आस मन में लिए
कर्म हित पग उठे.

ध्यान तन का नहीं
वह चला जा रहा.
ईंट, गारे में सब कुछ
है गला जा रहा.
सिर बालों से गिर बूंद
मोती सम है बनी.
पीर दिल में जो है
आज उसमें सनी.
बोझ जीवन का थामे
पांव डगमग उठे.
आस मन में लिए
कर्म हित पग उठे.

भानु अंम्बर में धधक
अग्नि सम वह जले.
नीचे धरनी बिचारी
तपन से ही गले.
मध्य में देह भीतर
छुधा को समेटे हुए.
विधना की सौगात
निज तन लपेटे हुए.
भाग्य के निर्णय पर
पांव डगमग उठे.
आस मन में लिए
कर्म हित पग उठे.

देह लगती है जर्जर
पर दधीचि की अस्थियां.
छोड़ दीं दूर पीछे
अपनी वो बस्तियां.
झोपड़ी किस्मत में थी
आज उसमें बस रहा.
भाग्य को ठेंगा दिखा
अपना तन कस रहा.
छत अपनी हो कब
पांव डगमग उठे.
आस मन में लिए
कर्म हित पग उठे.





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