Friday, March 14, 2014

बुरा न मानौ होरी है

राजनाथ के हाथ में, रंग हरा औ लाल
दांत निपोरे हैं खड़े. जहाँ चहौ लो डाल
नाथ जी धीरे-धीरे।

मनचाही जगहै मिली, बैठे कुरता झार
मुरली कि मुरली बजी, भोले के दरबार
फागुन तौ आइ गवा है.

आडवानी जी हाथ लै, रहे गुलाल उड़ाय
जिसको जैसा चाहिए,जल्दी से लै जाय
समय फिरि लौटि न आवै.

सुषमा जी सारी पहिरि, पहुँचि गयीं दरबार
पिचकारी भरि-भरि तबै,रंग रहे सब डार
होरी अब खूबै खेलैं।

प्यार भरी गुझिया सुनो, सबै रहे हैं बाँटि
गले दौरिकै मिलि रहे, मन में रहै न गाँठि
होरी हम खूब मनावैं,
प्रेम- रंग में घुलि जावैं।

होरी है भइ होरी है,
बुरा न मानौ होरी है। 


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