Friday, March 28, 2014

चुनावी दंगल 3

अरे भाई ! इस चुनाव के समय भी कहीं-कहीं सड़कों
की हालत बहुत खस्ताहाल है. सड़कों पर जंजाल बने
गड्ढे मुंह फैलाये हुए किसी लग्जरी से आलिंगन करने
को बेताब हैं -

तनि हमरे ऊपर निकसि परौ, उद्धारु होइ फिरि नेता जी.
लकलक तुमरी मरसडीजै से, तनि प्यारु फिरि नेता जी।




  

Wednesday, March 26, 2014

   
 मेरी दो पुस्तकें भी प्रकाशनाधीन हैं जो शीघ्र ही काव्य प्रेमियों के
सम्मुख आएगीं। मैंने एक कुंभ-कथा पर एक
काव्य पुस्तक की रचना की है। मेरा मुख्य उद्देश्य अवधी भाषा को
जीवंत रखना है। इसलिए मैं अवधी भाषा में काव्य रचना करता हूँ।
इसके साथ ही खड़ी बोली में काव्य रचना कर रहा हूँ।
     आज भी अपने समाज में ऐसे व्यक्ति हैं जो भारत जैसे देश में रहते
 हुए हिंदी भाषा के प्रति उदासीन हैं। ऐसे लोगों में हिंदी भाषा के प्रति
आत्मीय जुड़ाव पैदा करना ही मेरा मुख्य उद्देश्य है। मैं लोगों को समाचार,
हंसी-मजाक और कविताओं के माध्यम से हिंदी के साथ जोड़ सकूं, तो अपने
को मैं बहुत धन्य समझूंगा।    

Tuesday, March 25, 2014

चुनावी दंगल 2

बीजेपी कि सेवा करति,बीती उमर हमारि।
बगिया के माली सुनो, हमका दिहिन उखारि।
हमका दिहिन उखारि,दीन उइ टिकट न भाई
निर्दलीय की  राह अब,हमका परी देखाई।





Monday, March 24, 2014

चुनावी दंगल

टिकटु सीट पर अस बंटे, जैसे पत्ता तास ।
जेहिका एक्का ना मिला,वहुतो भवा उदास।
वहुतो भवा उदास, लाग फिर सोर्स लगावै।
टोना-टोटका सबै करि, लाग फिर भूत भगावै।

राजनीति कै खेल,अजब सुनो है भाय
देखै मा सीधा लगै, बहुतै टेढ़ है भाय।
बहुतै टेढ़ है भाय, मिलै राह  ना भाई
एकते एक सूरमा,चूहा बनति देखाई।


 चुनावी दंगल 

Thursday, March 20, 2014

स्व० खुशवन्त सिंह जी को श्राद्धांजलि

साहित्य के आँगन में अपनी अमिट छाप
छोड़ने वाले साहित्यकार खुशवन्त सिंह जी
अब हमारे बीच नहीं रहे। उनको मेरी ओर
से भावभीनी श्रद्धांजलि। उनके सम्मान में
कुछ पंक्तियाँ प्रेषित -

सन्ता- बन्ता की व्यथा,अब तो हुए अनाथ।
बगिया के माली सुनो, छोड़ि गए अब साथ।
छोड़ि गए अब साथ,  सुन  खुशवंता भाई
आँगन यहु साहित्य का,सूना परति दिखाई।

गौरैया दिवस पर विशेष

सूना अब आँगन रहै, फुदकति दिखै न कोइ
चूँ-चूँ-चूँ आवाज़ वह, लागति कहूँ गै  खोइ।
लागति कहूँ गै खोइ,नजरि वह अब ना आवै
अब मैया को ललना, केहिका पकरै को धावै।

फुर्र उड़नि,चूं-चूं कहनि, थलकुर नहीं देखाय
मुंह फैलाये लोदरवा, लागति गये  बिलाय।
लागति गये  बिलाय, दिखें अब कहूं न भाई
गौरैया कै फोटो अब, पन्नन मा देखी जाई

अबही भैया समय है, हाथन सरकि न जाय
यदा- कदा जो दिखतिहै,इनका लेउ बचाय।
इनका लेउ बचाय, आँगन ना सूना होइहै
गौरैया जो चुगि जाय,अनंधन दूना होइहै।



Wednesday, March 19, 2014

लोकपाल

भूखें भइया तड़पिगे, अन्ना,  केजरीवाल।
फिरहू हड्डी बनि फंसा, यहु बिल लोकपाल।
यहु बिल लोकपाल,राजा के मन ना भावा।
देके फिर आदेश , छींका पर वहिका धरवावा।  

Monday, March 17, 2014

लाल अम्बर हुआ

अंग आँचल से अपने छिपाने लगी।
हाथ दोनों से मुँह को बचाने लगी।
गाल पर लाल रंग जब लगा प्यार का,
पलकें नीची कर बहुत वो लजाने लगी।

लाल तन ये हुआ, लाल मन भी हुआ।
लाल रंग से फिर लाल जोबन हुआ।
प्यार का रंग जब फिर बरसने लगा,
लाल ये सब धरा लाल अम्बर हुआ।

Friday, March 14, 2014

बुरा न मानौ होरी है

राजनाथ के हाथ में, रंग हरा औ लाल
दांत निपोरे हैं खड़े. जहाँ चहौ लो डाल
नाथ जी धीरे-धीरे।

मनचाही जगहै मिली, बैठे कुरता झार
मुरली कि मुरली बजी, भोले के दरबार
फागुन तौ आइ गवा है.

आडवानी जी हाथ लै, रहे गुलाल उड़ाय
जिसको जैसा चाहिए,जल्दी से लै जाय
समय फिरि लौटि न आवै.

सुषमा जी सारी पहिरि, पहुँचि गयीं दरबार
पिचकारी भरि-भरि तबै,रंग रहे सब डार
होरी अब खूबै खेलैं।

प्यार भरी गुझिया सुनो, सबै रहे हैं बाँटि
गले दौरिकै मिलि रहे, मन में रहै न गाँठि
होरी हम खूब मनावैं,
प्रेम- रंग में घुलि जावैं।

होरी है भइ होरी है,
बुरा न मानौ होरी है। 


Thursday, March 13, 2014

चुनावी दोहे

बैठ किनारे उइ जबै, दिखा फूल एक लाल
तुरतै पकरिन यार फिर, भैया रामकृपाल

लखनऊ देखिस राह बहु,दिखा न कोऊ साथ
राज आस मन में लिए, आए अब तौ नाथ

दिक्क़त टंडन की सुनौ, ध्यान दीन ना कोइ
बनी बनाई राजि तौ , लागति अब गइ धोइ





Tuesday, March 11, 2014

ठेंगा हँसिहै।

टिकसु लेउ तुम आपन,पकरौ अपनी साइकिल।
आदत नहीं चलावै की ,यहिते बढ़िया पैदल। 
यहिते बढ़िया पैदल, टांग तौ बचिकै रहिहै।
मुंहिके भल जो गिरब,दांत बत्तीसों टुटिहै। 
गजोधर पोपला घुमिहै। 
जनता का ठेंगा हँसिहै। 
 

Monday, March 10, 2014

चुनाव का नशा

नशा भांग का अब सुनो, फीका परति देखाय।
यहु चुनाव का नशा अब, ऊपर चढ़ता  जाय।
ऊपर चढ़ता  जाय, कहति कुछ बनै न भाई
जोरैं सबके हाथ , परै ना अब कुछो दिखाई।

टिकट मिलै कस अब,करें जुगति सब भाय
सीट न खसकै हाथ से, कसिकै पकड़े जाय
कसिकै पकड़े जाय, नजरि है सब तन भाई
तिरछी टोपी है सीस, कहैं जुगाड़ू इनका भाई। 

Sunday, March 9, 2014

कवित्त

मॉस्क खरीदै को सुनो, नेता गये बाजार।
भोला चेहरा जब मिला,खुश बहुतै भे यार
खुश बहुतै भे यार,असली ना अब परी दिखाई।
यह तौ भोली बहुत, कस समझी चतुराई।

धड़-धड़,धड़-धड़ चलि रहे,माइक पर अब बान
उनकी बातन को सुनो, जनता ना  दे ध्यान।
जनता ना  दे ध्यान, नेता मीठी बातें मारें ।
अब ढीली हुई कमान, मूड कई बार उखारें।





Friday, March 7, 2014

कवित्त

नैन-नैन तू करति है, नैन बसें तेहिं पास।
औरन को तू लखि सके,निज पर होइ उदास।
निज पर होइ उदास, मुकुर तब पासै आवै।
गहराई निज नैन की, फिरि दरस करावै।


 

Wednesday, March 5, 2014

कवित्त

दुःखी होइ जन कोउ नहिं,रहै न मन संताप।
सुख बरसै हर जगह पर, मिटै सबै दुःख-ताप।
मिटै सबै दुःख-ताप,रहै ना कहुँ अंधियारा।
बाटें प्रेम सबै मिलि, जग बाढ़ै भाईचारा।




Tuesday, March 4, 2014

आँखे रोई

बना हितैषी जो रहा, अच्छा था व्यवहार।
खड़ा बिवस हो कोर्ट में, दोहरी पड़ती मार।
दोहरी पड़ती मार सुने ना उसकी कोई
लोगों कि उसी समय झर-झर आँखे रोई। 

नेता

नेता लीन्हे हाथ में, अब तो लॉलीपाप।
देंगे हम तुमको तभी, जब हम जाएँ टॉप।

नेता पहुंचे गाँव में, बहुतै रहे रिझाय।
बातन कि गाजर सुनो, सबका रहे देखाय।

यहि चुनाव के समय में, नेता परैं देखाय।
वोट मिले के बाद सब, बिल भीतर घुसि जाय.

Sunday, March 2, 2014

मुक्तक

सियासती ये अखाड़ा फिर जगमगाने लगा।
सफेदपोशों कि सफेदी से चमचमाने लगा।
रेशलिंग ये तो अजब है सुनो भाइयों ,
रेशलर एक - दूसरे को आइना दिखाने लगा।

जनता बेचारी को सब फिर बहलाने लगे।
गोल- मोल मीठी बातों से फुसलाने लगे।
चाहे मोदी, मुलायम ,राहुल हों सब ,
सरकस जैसे फिर करतब दिखाने लगे।