Wednesday, January 8, 2014

भय्या क्या हाल है

भय्या क्या हाल है
आवाज़ का जब कान से हुआ साथ 
मनो रख दिया किसी ने घाव पर हाथ 
झंकृत हो गया तन मन और माथ 
परछाई भी छोड़ती है अँधेरे में साथ 
लड़खड़ाते पैर यही कहते हैं 
वही बेढंगी पुरानी चाल है 
भय्या यही हाल है 

मैंने सोचा था चाँद तारे तोड़ लूंगा 
हर टूटे दिल को फिर से जोड़ दूंगा 
बहते पानी का रुख मैं मोड़ दूंगा 
अपने ओझ से पत्थर को तोड़ दूंगा 
पर मैं शायद हो गया नाकाम 
इस तन पर वही हड्डी वही खाल है 
भय्या यही हाल है 

सोचा था कि उजड़े को मैं  फिर बसाऊंगा 
निकल कर आए जो आसूं उनको मैं सुखाऊंगा 
बदरंग सूरत को रंगीन मैं  कर दिखाऊंगा 
भूक से तड़पे को रोटी मैं खिलाऊंगा 
पर इस महगाई के दौर में 
सूखी आतों  का बन गया जाल हैं 
भय्या यही हाल है 

अब तो कभी गृह कर कभी जल कर हैं 
आय कर से अब बहुत लगता डर  है 
इस ज़िन्दगी में अब बाकी क्या कसर  है 
अब तो घूमता इर्द गिर्द कर ही कर है 
इस कर ने किया तार तार इतना 
कि यह भीतर से बहुत फटेहाल है 
भय्या यही हाल है 
भय्या यही हाल है 












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