भय्या क्या हाल है
आवाज़ का जब कान से हुआ साथ
मनो रख दिया किसी ने घाव पर हाथ
झंकृत हो गया तन मन और माथ
परछाई भी छोड़ती है अँधेरे में साथ
लड़खड़ाते पैर यही कहते हैं
वही बेढंगी पुरानी चाल है
भय्या यही हाल है
मैंने सोचा था चाँद तारे तोड़ लूंगा
हर टूटे दिल को फिर से जोड़ दूंगा
बहते पानी का रुख मैं मोड़ दूंगा
अपने ओझ से पत्थर को तोड़ दूंगा
पर मैं शायद हो गया नाकाम
इस तन पर वही हड्डी वही खाल है
भय्या यही हाल है
सोचा था कि उजड़े को मैं फिर बसाऊंगा
निकल कर आए जो आसूं उनको मैं सुखाऊंगा
बदरंग सूरत को रंगीन मैं कर दिखाऊंगा
भूक से तड़पे को रोटी मैं खिलाऊंगा
पर इस महगाई के दौर में
सूखी आतों का बन गया जाल हैं
भय्या यही हाल है
अब तो कभी गृह कर कभी जल कर हैं
आय कर से अब बहुत लगता डर है
इस ज़िन्दगी में अब बाकी क्या कसर है
अब तो घूमता इर्द गिर्द कर ही कर है
इस कर ने किया तार तार इतना
कि यह भीतर से बहुत फटेहाल है
भय्या यही हाल है
भय्या यही हाल है
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