Wednesday, January 29, 2014

पीठ दिखाना कभी ना

खाओ कसम सीमा पर लल्ला
मेरी कोख पे दाग लगाना कभी ना
बांह पे जो मैंने बाँधा है छल्ला
भूलके भी उसे गिराना कभी ना
कभी याद जो आए तुम्हें ये पल्ला
रणभूमि को छोड़ के आना कभी ना
बैरी मचाता रहे कितना भी हल्ला
रणभूमि में पीठ दिखाना कभी ना 

Tuesday, January 28, 2014

अश्रु बहाती नहीं है

इस देश की माँ अपने सुत को
सीमा पर भेज घबराती नहीं है
निज रच्छा सौगंध बहिन दे
देश का मान घटाती नहीं है
प्यार की कसम दिलाकर पत्नी
पास पीया को बुलाती नहीं है
यह धन्य शहीद की है जननी
सुत-शव पर अश्रु बहाती नहीं है    

Monday, January 27, 2014

दानों में यह दान बड़ा

वेद उपनिषद सब कहते
जैसा इतिहास बताता है
दानों में यह दान बड़ा
जो कन्यादान कहाता है

तीरथ जाकर लोग जातां से
आराध्य का दर्शन करते हैं
दान धर्म से पुण्य प्राप्त हो
पाप से मन में डरते हैं
पुण्य कहाँ से मिलेगा मुझको
निश्चित ना कर पाता है
दानों में यह दान बड़ा
जो कन्यादान कहाता है

दान ब्राह्मणो को देते
चिड़ियों को पास बुलाते हैं
भूखे को ना भोजन देते
बन्दर को पुए खिलाते हैं
पाप -पुण्य के चक्कर में
अपने को भरमाता है
दानों में यह दान बड़ा
जो कन्यादान कहाता है

माता भगिनी भी यह होती
वामांगी यही कहाती है
सदियों से शोषण को सहकर
फिर भी चुप रह जाती है
बेटी से भी मान बढ़ेगा
ऐसा इतिहास बताता है
दानों में यह दान बड़ा
जो कन्यादान कहाता है
  

Tuesday, January 21, 2014

उनमें डूब जाने का मन करता है

जैसे कोई कतरा शराब का यारों
जाम में कभी ठहर जाता है
वैसा ही दिख रहा है इनमें
अब लब से लगाने का मन करता है

रंग रूप हंसी औ अठखेलियां
ये सब कहने कि बातें है यारों
इनकी कसमकस को देखकर
यहीं ठहर जाने का मन करता है  

इन आखों की चितवन और अदा
को संजोने का मन करता है
सागर सी गहराई है जिनको मिली
उनमें डूब जाने का मन करता है

उनको ये शर्मोहया औ बांकपन
कुदरत ने जो नियामत बख्सी है
उनको एक पल के दीदार पर
अब मर जाने का मन करता है

Sunday, January 19, 2014

जो उसने शादी की इच्छा जतायी

ऐसी क्या जरूरत  थी आयी
जो उसने शादी की इच्छा जतायी

फिर तो रिश्ते ही रिश्ते आने लगे
लोग दादी -अम्मा दी कुंडली मिलाने लगे
वो होनेवाली का फ़ोटो मंगाने लगे
हांथो पर टांग कर फ़ोटो खिचाने लगे
वाह !ऊपर वाले ने क्या बुद्धी फिरायी
जो उसने शादी की इच्छा जतायी

एक फ़ोटो पर दिल उनका अटक गया
यह तन पके आम सा लटक गया
बुड्ढा जीवन कि राह से भटक गया
लोग कहते हैं कि अब यह सटक गया
फिर दन्तकार से बत्तीसी फिट करायी
जो उसने शादी की इच्छा जतायी

फिर पोते ने पॉर्लर की राह दिखायी
और जरजर तन की वैक्सिंग करायी
जब खंडहर पर चमक दी दिखायी
फिर सूरत आइने में नजर आयी
वाह क्या बात मजेदार काया है पायी
जो उसने शादी की इच्छा जतायी

फिर क्या शादी का दिन आ गया
बैंडवाला बैंड भी बजा गया
पंडित आग के सात फेरे करा गया
जिंदगी में डेढ़ कुंतल वजन बढ़ा गया
खुद थे छुहारा बीवी नारंगी सी पायी
जो उसने शादी की इच्छा जतायी  


Thursday, January 16, 2014

घोड़ी नयी थी

घोड़ी कुछ ज्यादा ही नयी थी
पहले बारात नहीं गयी थी

उसे सजाकर बारात लाया गया
उस पर दूल्हे को बैठाया गया
घोड़ी वाले को नेग दिखाया गया
फिर बारात को आगे बढ़ाया गया
वह कुछ रुक रुक कर चल रही थी
क्योकि घोड़ी कुछ ज्यादा ही नयी थी

बारातियों कि चाल मतवाली है
उनके आस पास दुसरे की घरवाली है
सूट पहने हैं मगर जेब तो खाली है
पैर तो रुके क्योकि घूरती घरवाली है
वह भी यह देख हिनहिना रही थी
क्योकि घोड़ी कुछ ज्यादा ही नयी थी

बैंड वाला बैंजो बजाने लगा
भोंपू वाला तान मिलाने लगा
दूल्हे का जीजा डांस दिखाने लगा
आतिशबाज भी मस्ताब जलाने लगा
यह देख वह चकमका रही थी
क्योकि घोड़ी कुछ ज्यादा ही नयी थी

इस ढमढम ने उसकी बेचैनी बढ़ायी
उसे भी नाचने कि इच्छा हो आयी
फिर उसने कथक कि स्टाईल दिखायी
उसने दुलत्ती पर दुलत्ती चलायी
वह तो सिर्फ खुशियां ही जता रही थी
क्योकि घोड़ी कुछ ज्यादा ही नयी थी


Wednesday, January 15, 2014

मैं जब बच्चा था !

मैं जब बच्चा था !

तब ना कोई फिक्र सताती थी
तब माँ अपना दूध पिलाती थी
गीले रहकर सूखे में सुलाती थी
नींद न आये तब लोरी सुनाती थी
तब सोच नहीं सकता था
यह दिमाग बहुत कच्चा था
मैं जब बच्चा था !

तब खेल मन को भाते थे
वे कभी कुछ भरमाते थे
वे कभी असलियत दिखाते थे
आँख मिचौली भी कर जाते थे
तब समझ नहीं पाता था
क्या झूठ क्या सच्चा था
मैं जब बच्चा था !

बाहर से जब पिता जी आते थे
साथ अपने बहुत कुछ लाते थे
बिन मांगे ही हम वो पाते थे
फिर मौज और खुशियां मनाते थे
फिसल गये रेत जैसे वो दिन
सोचता हूँ वह समय बहुत अच्छा था
मैं जब बच्चा था !


When I was a child !

There was nothing to worry
Mother feeds from her breast
(She) use to stays in wet, puts me in dry
When not asleep, she sings songs
Then I could not imagine
I had a weak mind
When I was a child !

Games appealed the most
Sometimes misleads us
Sometimes show reality too
Sometimes plays the blind cap
Then I could not understand
What was truth what was lies
When I was a child !

When the father came in
Brought a lot(goods) with him
Without asking we get all those
(Then we)Celebrate the fun and happiness
Those days have slipped like sand
I think that was the best time
When I was a child !


Tuesday, January 14, 2014

कोई गीत सुना देना

मन गाये ना गाये
कोई गीत सुना देना
दिल के सितार पर तुम
धुन कोई बजा देना

सावन में झर -झर बूंदे
मुझको चिढ़ा रही हैं
दिल में दबी तपन को
ये सब बढ़ा रही हैं
पैरों की पैंजनी की
धुन सुना  देना
कोई गीत सुना देना

नभ में बादल ये
घनघोर बरसा करे
दिल ये तुम बिन प्रिये
कब तक तड़पा करे
बूंदों के संग तुम अब
कुछ गुनगुना देना
कोई गीत सुना देना

मैं जो चातक हूँ
तुम बूँद स्वाती की हो
मैं जो याचक तो
तुम ओस पाती की हो
इस ताप से तपते को
ठंडी बयार देना
कोई गीत सुना देना


मोबाइल -  9198003657  

Monday, January 13, 2014

आज क्या बनाया है?

कहो ! आज क्या बनाया है?

पहले तो वह कुछ  धीरे से मुस्करायी
अचानक माथे पर रेखाएं उभर आयी
वह कुछ अंदर ही अंदर झुंझलायी
फिर थोडा बहुत बच्चों पर चिल्लायी
एकाएक मेरी ओर मुड़कर बोली
सुहागिन होने का अच्छा सिला पाया है
तुम पूछते हो आज क्या बनाया है?

किचन में रखे खाली डिब्बे बोलते हैं
कनस्तर भी तुम्हारी ढकी पोल खोलते हैं
कभी मुझे भर न सका यह कह टटोलते हैं
वजन कम होने से मौज में सब डोलते हैं
गैस चूल्हे कि और घूर कर बोली
बस आज ही इसने भी सितम ढाया है
तुम पूछते हो आज क्या बनाया है?

पिंकू को बोर्नविटा दो दिन से नही मिला है
रिंकी का फटा फ्राक आज ही तो सिला है
उसका मुरझाया चेहरा अभी नही खिला है
क्योकि उसे बर्थडे गिफ्ट भी नही मिला है
अब तुम्ही बताओ एक तो ये तंगी
ऊपर से इस डायन का बुरा साया है
तुम पूछते हो आज क्या बनाया है?

अब तो मेहमान आने पर बहुत डर लगता है
उसे क्या खिलाऊ यही सदमा लगा रहता है
देर होने पर वह कुछ बिना खाये चला जाता है
शायद हमारी मजबूरी को यूँ ही भांप जाता है
अब मैं क्या करूँ क्या न करूँ
विधाता ने इस भूंख को क्यों बनाया है
तुम पूछते हो आज क्या बनाया है?

अभी तुम्हारे वेतन आने में सात दिन शेष हैं
दाल चावल के डिब्बों में उनके अवशेष हैं
बस आटा ही कुछ बचा कनस्तर में शेष है
इसी महीने में आने वाला त्यौहार विशेष है
क्या बनाऊं अभी तक ये न समझ पायी हूँ
क्या बताऊं क्या बनाया है
तुम पूछते हो आज क्या बनाया है?




Wednesday, January 8, 2014

भय्या क्या हाल है

भय्या क्या हाल है
आवाज़ का जब कान से हुआ साथ 
मनो रख दिया किसी ने घाव पर हाथ 
झंकृत हो गया तन मन और माथ 
परछाई भी छोड़ती है अँधेरे में साथ 
लड़खड़ाते पैर यही कहते हैं 
वही बेढंगी पुरानी चाल है 
भय्या यही हाल है 

मैंने सोचा था चाँद तारे तोड़ लूंगा 
हर टूटे दिल को फिर से जोड़ दूंगा 
बहते पानी का रुख मैं मोड़ दूंगा 
अपने ओझ से पत्थर को तोड़ दूंगा 
पर मैं शायद हो गया नाकाम 
इस तन पर वही हड्डी वही खाल है 
भय्या यही हाल है 

सोचा था कि उजड़े को मैं  फिर बसाऊंगा 
निकल कर आए जो आसूं उनको मैं सुखाऊंगा 
बदरंग सूरत को रंगीन मैं  कर दिखाऊंगा 
भूक से तड़पे को रोटी मैं खिलाऊंगा 
पर इस महगाई के दौर में 
सूखी आतों  का बन गया जाल हैं 
भय्या यही हाल है 

अब तो कभी गृह कर कभी जल कर हैं 
आय कर से अब बहुत लगता डर  है 
इस ज़िन्दगी में अब बाकी क्या कसर  है 
अब तो घूमता इर्द गिर्द कर ही कर है 
इस कर ने किया तार तार इतना 
कि यह भीतर से बहुत फटेहाल है 
भय्या यही हाल है 
भय्या यही हाल है