Monday, May 5, 2014

थाने लिया बुलाय


















भइया इक दिन कवी को, थाने लिया बुलाय।
गरजे थानेदार फिर , कविता देउ सुनाय।
कविता देउ सुनाय, आज कुछ ठीक न लागै।
कविता ऐसी होय, चोर ना थाने से भागै।
शर्त सुनी जब कवी ने, गया अँधेरा छाय।
निकसे ना आवाज तब, वह ठाढे हकलाय।।

उठे सिपाही एक फिर, डंडा पटकिन भाय।
साहब हमको एक तो, युक्ती गयी सुझाय।
युक्ती गयी सुझाय, नर्तकी अब एक बुलाओ।
वह तो नाचे- नाच, कविता इससे कहलाओ।
फिर भी कविता ना कहे,इसको देऊ बताय।
पीटै तबला रात भर, औ भडुहा देउ  बनाय।।

1 comment:

  1. Bahut ho gaya chhandak rajesh ji, ab to leo apni kavita chhapway, ab na chhapi to kab chhapi, jab jay budhapa niyray. Very nice and commedian poem.

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