Friday, May 9, 2014

मर्यादा

















बिस्तर पर बैठकर बेड टी पीती जो,
हाय राम कैसी ये देश की तरुणाई है।
अपने सुहाग को जो नौकर है मानती,
पत्नी धरम की फ़िर लुटिया डुबाई है।
कैसे कहूँ ये हैं अनुसुइया के देश की ,
जिसने पतिधर्म की रीति तो चलाई है।
नारी धर्म की  मर्यादा को त्यागकर,
जीन्स-बिकनी में अब घूमती लुगाई है।।

1 comment:

  1. Aaj ke samaj me mahilayen 'Naari Dharm' ki paribhasha bhul si gayi hai. Iski jagrukata ke liye ye kavita sateek hai. Very nice. I like it.

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