Rajesh Shukla Chhandak
Sunday, February 2, 2014
धरती बन गई नारि नवेली
प्रातहि धरती सुखधाम लगै
जनु नींद से जागी नारि नवेली
चटकी कलियाँ गुंजाय मधुप
अंगड़ाई भरैं तरु नारि नवेली
ओस की बूँद तो मोती लगें अब
जनु थाल भरे हैं आई सहेली
रितुराज के स्वागत में अब तो
सजि धरती बन गई नारि नवेली
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