Tuesday, February 25, 2014

दोहामृत

नैन बान से जो बचे, जोगी सिद्ध कहाय
बान लगै जो हिये में, तो भोगी होइ जाय

नारी की सारी पकरि, जो मग बढ़ता जाय
बुद्धिमान की नजरि में, वहु मेहरा कहलाय

नारी-नर कि ढाल बनि, खड़ी रहै दिन-राति
लेकिन कुछ मनई सुनो, दिखते दुसरी पांति

नारी सरिता सम सुनो, राह चलै लहराय
घाव किनारे पर करै, सागर में मिलि जाय




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