Rajesh Shukla Chhandak
Wednesday, February 26, 2014
नदी आ गई
तन में इक प्यास है मन में इक आस है
बात कहनी है उनसे जो कुछ ख़ास है
रुन-झुन कानों में जैसे घुलने लगी
अब तो मिलने का उनसे विस्वास है
खारे सागर से मिलने नदी आ गई
प्रीत पावन को करने नदी आ गई
दर्द, एहसास, उल्लास मन में लिए
खारे को मीठा करने नदी आ गई
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