शुभ लगन भयो है कृष्ण पाख,
भादों की अब अष्टमी आयी.
राति अंधेरी समय सुहावन,
घनघोर घटा नभ में है छायी.
कांट, करील औ कुंज भये सब,
मुनि विप्रन ने फिर टेर लगायी.
देवकी कोख को धन्य कियो,
कान्हा जैसो है नाम धरायी.
दुष्ट दलन महिमंड़न के हित,
गोकुल आये हैं कृष्ण-कन्हाई.
वृषभान लली जो राधा भयी,
लीला करी फिर रास रचाई.
ब्रजमण्डल की रज धन्य कियो,
गोवर्धन को अंगुरी पे धराई.
आओ पुन: यहि भारत में फिर,
राजनीति की भाषा देउ पढ़ाई.
- छन्दक
भादों की अब अष्टमी आयी.
राति अंधेरी समय सुहावन,
घनघोर घटा नभ में है छायी.
कांट, करील औ कुंज भये सब,
मुनि विप्रन ने फिर टेर लगायी.
देवकी कोख को धन्य कियो,
कान्हा जैसो है नाम धरायी.
दुष्ट दलन महिमंड़न के हित,
गोकुल आये हैं कृष्ण-कन्हाई.
वृषभान लली जो राधा भयी,
लीला करी फिर रास रचाई.
ब्रजमण्डल की रज धन्य कियो,
गोवर्धन को अंगुरी पे धराई.
आओ पुन: यहि भारत में फिर,
राजनीति की भाषा देउ पढ़ाई.
- छन्दक
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