भानु तपै नभ में अइसे जनु
आगि लगी नभ मण्डल में।
जोगी को जोग सधै अब ना
देव विकल नभ मण्डल में।
सीकर चोटी से एड़ी बहत
है शांति नहीं नभ मण्डल में।
रौद्र भयो मृगशिरा बहुत ही
दुर्वासा दिखै नभ मण्डल में।।
परशुराम भये अस लागैं रवि
क्रोध की सीमा न देखाइ रही है।
महि आज तवा सगरी लागति
जनु चूल्हे पै नियति जराइ रही है।
सृष्टि विकल तड़पति सगरी
घन राशि कतहुं न देखाइ रही है।
अब दिवस गरम है आगी सों
घर-बाहर सब सुलगाइ रही है।